Class 10th Hindi

‘नाखून क्यों बढ़ते हैं कक्षा 10 हिंदी का महत्वपूर्ण ‘लघु उत्तरीय’ प्रशन और उत्तर


1. बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को क्या याद दिलाती है? 

उत्तर- नाखूनों का बढ़ना पाश्विक प्रवृत्ति मनुष्य की सहजवृत्ति है। यह मनुष्य को हमेशा याद दिलाती है कि तुम असभ्य युग से सभ्य यग में आ गए, लेकिन तुम्हारी सोच मेरी तरह है जो लाख मन से हटाओ पनप ही जाती है। मनुष्य के ईर्ष्या, जड़ता, हिंसक प्रवृत्ति क्रोध आदि कभी खत्म होने वाला नहीं है। तभी तो शस्त्रों की होड़ लगी हुई है। नाखून बढ़ते हुए यह याद दिलाती है।


2. लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना कहाँ तक संगत है?

उत्तर- अस्त्र हाथ में रखकर वार किया जाता है और शस्त्र फेंककर। लाखों वर्ष पहले मनुष्य जंगली था, वनमानुष जैसा नाखून द्वारा ही वह जंगली जानवरों आदि से अपनी रक्षा करता था। दाँत भी थे लेकिन उनका स्थान नाखूनों के बाद था। चूँकि नाखून हमारे शरीर का अंग है, इसलिए लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना सर्वथा उचित है।


3. लेखक क्यों पूछता है कि मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है? पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर? स्पष्ट करें। 

उत्तर- लेखक देखता है कि मनुष्य एक ओर अपने बर्बर-काल के चिह्न नष्ट करना चाहता है और दूसरी ओर प्रतिदिन घातक शस्त्रों की वृद्धि करता है तो वह चकित रह जाता है और उसके मन में सवाल उठता है कि आज मनुष्य किस ओर जा रहा है-पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर? वस्तुतः लेखक मनुष्य को मनुष्यता की ओर ले जाना चाहता है। वह चाहता है कि मनुष्य में मानवोचित संयम, सदाशयता और स्वाधीनता के भाव जगें, वह शस्त्रों की होड़ में न पड़े।


4. ‘स्वाधीनता’ शब्द की सार्थकता लेखक क्या बताता है? 

उत्तर- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के विचार से ‘स्वाधीनता’ शब्द अत्यन्त व्यापक और अर्थपूर्ण है। इसमें अपने-आप ही अपने-आपको नियंत्रित करने का भाव है, कोई बाह्य दबाव नहीं है। इस शब्द में हमारे देश की परंपरा और संस्कृति परिलक्षित होती है जिसका मूल तत्व है संयम और दूसरे के सुख-दुख के प्रति समवेदना, त्याग और श्रेष्ठ के प्रति श्रद्धा। यही कारण कि द्विवेदी जी ने ‘अनधीनता’ की अपेक्षा ‘स्वाधीनता’ शब्द को ‘इण्डिपेण्डेंस’ का सार्थक पर्याय माना है।


5. मनुष्य बार-बार नाखूनों को क्यों काटता है? 

उत्तर- मनुष्य नहीं चाहता कि बर्बर युग की कोई निशानी उसमें शेष रहे। इसलिए, बार-बार नाखूनों को काटता है।


 6. लेखक ने किस प्रसंग में कहा है कि बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती? लेखक का अभिप्राय स्पष्ट करें। 

उत्तर- पुराने से चिपके रहने के प्रसंग में लेखक ने उस बंदरिया का जिक्र क्रिया है जो अपने सीने से अपने मृत बच्चे को चिपकाए घूमती थी। लेखक का कहना है कि ऐसी बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती। वह मृत और जीवंत में अन्तर नहीं कर सकती जबकि मनुष्य में चिंतन-शक्ति है, वह निर्जीव और सजीव में अन्तर कर सकता है, समझ सकता है कि क्या उपयोगी है और क्या अनुपयोगी। वस्तुतः पुरातन और नवीन की अच्छी बातों को ग्रहण करना और व्यर्थ तत्वों का त्याग ही मनुष्य का आदर्श है।


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