Class 9th History Chapter Wise Short Long Type Question | इतिहास की दुनिया चैप्टर नाम- “शांति प्रयास (Attempts for Peace)” का प्रशन
Class 9th – कक्षा 9वीं
विषय – इतिहास की दुनिया
Short Long Question (लघु दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)
चैप्टर का नाम- शांति प्रयास (Attempts for Peace)
लघु उत्तरीय प्रश्न ⇒
1. राष्ट्रसंघ की स्थापना किस प्रकार हुई ?
उत्तर⇒ प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त होते-होते राष्ट्रसंघ की आवश्यकता प्रत्येक देश में महसूस की जाने लगी। अतः जब जनवरी, 1919 में पेरिस शांति-सम्मेलन प्रारंभ हुआ तो राष्ट्रसंघ के ऊपर गम्भीरतापूर्वक विचार होना आवश्यक हो गया। पेरिस के शांति-सम्मेलन में राष्ट्रसंघ के संविधान तैयार करने का कार्य राष्ट्रपति वुडरो विल्सन के सभापतित्व में 19 प्रतिनिधियों के एक सम्मेलन को सौंपा गया। 14 फरवरी, 1919 को राष्ट्रसंघ कमीशन ने इसका प्रारूप तैयार किया। 28 अप्रैल, 1919 को शांति सम्मेलन ने इसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। इसकी स्थापना 10 जनवरी, 1920 को स्विट्जरलैंड के जेनेवा नामक नगर में की गई। प्रारंभ में इसके 42 सदस्य थे, जो बढ़कर 60 तक पहुँच गये। अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन को राष्ट्रसंघ का ‘धर्मपिता’ कहा जाता है ।
2. राष्ट्रसंघ निःशस्त्रीकरण के प्रश्न को सुलझाने में क्यों असफल रहा?
उत्तर⇒ राष्ट्रसंघ ने निःशस्त्रीकरण के लिए कई प्रयास किये, लेकिन वे सभी विफल रहे। 1922 में वाशिंगटन सम्मेलन निःशस्त्रीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था। 1932 में राष्ट्रसंघ के तत्त्वावधान में विश्व के सभी राष्ट्रों का एक निःशस्त्रीकरण सम्मेलन हुआ, पर सफल नहीं हो सका। इसके अतिरिक्त, इस दिशा में राष्ट्रसंघ ने और भी प्रयास किए, लेकिन राष्ट्रों के स्वार्थ के सामने उसकी एक न चली और निःशस्त्रीकरण की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका। जब राष्ट्रों के बीच मनमुटाव पैदा होने लगता है, एक देश दूसरे देश से सशंकित होने लगता है तो वे अपनी सुरक्षा के प्रबन्ध में जुट जाते हैं। इस अवस्था में सुरक्षा का एकमात्र उपाय हथियारबंदी समझा जाता है। 1935 में जब संसार की स्थिति काफी बिगड़ गयी तो ब्रिटेन भी हथियारबंदी शुरू कर दिया। ब्रिटेन की देखा-देखी वे देश भी हथियारबंदी करने लगे जो अब तक चुप बैठे थे। 1935 में जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने वर्साय की संधि की उपेक्षा करते हुए अनिवार्य सैनिक भर्ती शुरू कर दी, जिसकी देखा-देखी अन्य राष्ट्र भी शस्त्रीकरण की होड़ में शामिल हो गए। इस प्रकार राष्ट्रसंघ निःशस्त्रीकरण की समस्या को सुलझाने में असफल हो गया।
3. राष्ट्रसंघ किन कारणों से असफल रहा ? किन्हीं चार कारणों को बताएँ ।
उत्तर⇒ राष्ट्रसंघ की असफलता के निम्नलिखित चार कारण थे-
(i) संयुक्त राज्य अमेरिका का असहयोग : राष्ट्रसंघ की स्थापना अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन की प्रेरणा से हुई थी, किन्तु अमेरिका राष्ट्रसंघ का सदस्य नहीं बना। इसका राष्ट्रसंघ के ऊपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
(ii) राष्ट्रसंघ का सार्वभौमिक न होना : राष्ट्रसंघ के सभी राष्ट्र सदस्य नहीं थे। इस प्रकार राष्ट्रसंघ कुछ ही राष्ट्रों का संगठन बनकर रह गया जिनपर यूरोपीय देशों का प्रभाव अधिक था ।
(iii) राष्ट्रसंघ के सदस्य राष्ट्रों की परस्पर विरोधी नीतियाँ : सदस्य राष्ट्र की परस्पर विरोधी नीतियाँ भी राष्ट्रसंघ की असफलता का प्रमुख कारण था । फ्रांस जर्मनी को कुचलना चाहता था तो ब्रिटेन अपने व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जर्मनी के प्रति उदारता की नीति का अनुसरण कर रहा था।
(iv) राष्ट्रसंघ के संविधान की दुर्बलताएँ : राष्ट्रसंघ के संविधान में कुछ ऐसे दोष थे, जो उसकी असफलता के लिए उत्तरदायी थे । राष्ट्रसंघ के सदस्य राष्ट्र उसकी सिफारिशों को मानने के लिए बाध्य नहीं थे।
4. संयुक्त राष्ट्रसंघ के उद्देश्यों एवं सिद्धांतों को लिखें।
उत्तर⇒ संयुक्त राष्ट्रसंघ के उद्देश्य :-
(i) अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बनाये रखना और सदस्य राष्ट्रों में मैत्री को बढ़ावा देना,
(ii) राष्ट्रों की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक उन्नति के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग से कार्य करना,
(iii) मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता का सम्मान करना तथा
(iv) इन समान लक्ष्यों की पूर्ति के लिए ऐसे संगठन स्थापित करना जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करें।
संयुक्त राष्ट्रसंघ के सिद्धांत :-
(i) संयुक्त राष्ट्रसंघ के सभी सदस्य सार्वभौम तथा समान हैं।
(ii) सभी सदस्य संयुक्त राष्ट्रसंघ के नियमों का पालन करेंगे,
(iii) सभी सदस्य राष्ट्र अपने पारस्परिक झगड़ों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करेंगे जिससे शांति, सुरक्षा और न्याय के भंग होने का भय न हो,
(iv) कोई भी सदस्य राष्ट्र किसी की प्रादेशिक अखण्डता एवं राजनीतिक स्वतंत्रता के विरुद्ध कोई भी ऐसा कार्य नहीं करेगा जिससे उस राष्ट्र एवं संयुक्त राष्ट्रसंघ का अपमान होता हो ।
5. संयुक्त राष्ट्रसंघ के गैर-राजनीतिक कार्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर⇒ संयुक्त राष्ट्रसंघ के गैर-राजनीतिक कार्य के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक एवं स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्याओं का अध्ययन कर सहायता पहुँचाना है। इसके मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-
(i) विभिन्न रोगों के निवारण, शिशु आहार- दुग्ध संरक्षण और वितरण, प्रसूति गृह एवं शिशु कल्याण केन्द्रों की स्थापना ।
(ii) महामारियों और बीमारियों के उन्मूलन का प्रयास करना, स्त्रियों एवं बच्चों के स्वास्थ्य को उन्नत बनाना ।
(iii) विश्व में खाद्य एवं कृषि की स्थिति को उन्नत बनाना ।
(iv) श्रमिकों की दशा सुधारना, उनका जीवन स्तर उन्नत करना, श्रमिक, मालिक एवं सरकार के मध्य सहयोग स्थापित करना, श्रम सम्बन्धी मसौदे तैयार करना, श्रमिकों के सामाजिक सुरक्षा के लिए प्रयास करना।
6. संयुक्त राष्ट्रसंघ की किन्हीं चार राजनीतिक सफलताओं का उल्लेख करें।
उत्तर⇒ संयुक्त राष्ट्रसंघ की चार राजनीतिक सफलताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) रूस-ईरान विवाद :- 19 जनवरी, 1946 को ईरान ने सुरक्षा परिषद् में यह शिकायत की कि रूसी सैनिक अवैध रूप से ईरान में रह रही है। सुरक्षा परिषद् ने रूस से अनुरोध किया कि वह ईरान से अपनी सेना वापस बुला ले। रूस ने अपनी सेना वापस बुला ली और इस प्रकार इस समस्या का समाधान हो गया।
(ii) कोरिया संकट :- उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया में 1950 से युद्ध चल रहा था। संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रयास से 1953 में दोनों के बीच युद्धविराम संधि हो गई। इस प्रकार संयुक्त राष्ट्रसंघ कोरिया संकट को समाप्त करने में सफल रहा।
(iii) स्वेज – संकट :- मिस्र ने 1956 में स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इससे अन्तर्राष्ट्रीय विवाद उत्पन्न हो गया। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने अन्तर्राष्ट्रीय सेना तैनात कर शांति स्थापना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(iv) सीरिया – लेवनान – समस्या :- 1946 में सीरिया – लेबनान – संकट का मामला सुरक्षा परिषद् में आया। संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रयास से ब्रिटेन और फ्रांस ने बहुमत का सम्मान करते हुए अपनी सेनाएँ सीरिया तथा लेबनान से हटा ली ।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ⇒
1. राष्ट्रसंघ की स्थापना की परिस्थितियों का वर्णन करें।
उत्तर⇒ प्रथम विश्वयुद्ध में अपार जन-धन की हानि हुई थी तथा इसकी विभीषिका के दुष्परिणाम समस्त विश्व की जनता को भुगतने पड़े थे । अतः विश्व के प्रमुख राजनीतिज्ञों का चिन्तित होना स्वाभाविक ही था। भविष्य में इस प्रकार के युद्धों को रोकने के लिए तथा संसार को विनाश के गर्त से बचाने के लिए उन्होंने एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना पर विचार किया, ताकि विविध राष्ट्रों के मध्य उठने वाले विवादों को पारस्परिक सहयोग एवं बातचीत द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाया जा सके और मानव जाति का कल्याण हो सके। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए वर्साय की संधि में लीग ऑफ नेशन्स (राष्ट्रसंघ) नामक एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था के गठन पर बल दिया गया। पेरिस के शांति सम्मेलन में राष्ट्रसंघ के संविधान को तैयार करने का कार्य अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन के सभापतित्व में 19 प्रतिनिधियों के सम्मेलन को सौंपा गया। 14 फरवरी, 1919 को राष्ट्रसंघ कमीशन ने इसका प्रारूप तैयार किया। 28 अप्रैल, 1919 को शांति सम्मेलन ने इसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। इसकी स्थापना 10 जनवरी, 1920 को स्विट्जरलैंड के जेनेवा नामक नगर में की गई। प्रारंभ में इसके 42 सदस्य थे, जो बढ़कर बाद में 60 तक पहुँच गये। अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन को राष्ट्रसंघ का ‘धर्मपिता’ कहा जाता है। एम० लोनॉडे के अनुसार- -“राष्ट्रसंघ अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक जीवन की एक नवीन प्रणाली थी। यह शक्ति पर आधारित राजनीति को उत्तरदायित्वपूर्ण राजनीति में परिवर्तन करने का एक प्रयास था ।” राष्ट्रसंघ की स्थापना का मुख्य श्रेय अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति वुडरो विल्सन को जाता है जिन्होंने अपने ’14 सूत्री’ प्रस्तावों में किसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना की अनिवार्यता पर बल दिया।
2. राष्ट्रसंघ किन कारणों से असफल रहा? वर्णन करें।
उत्तर⇒ राष्ट्रसंघ की असफलता के निम्नलिखित कारण थे-
(i) राष्ट्रसंघ का सार्वभौमिक न होना :- राष्ट्रसंघ के सभी राष्ट्र सदस्य नहीं थे। आरंभ में सोवियत रूस, आस्ट्रिया, हंगरी और तुर्की इसके सदस्य नहीं बनाये गये। अमेरिका भी राष्ट्रसंघ से पृथक रहा। जापान, जर्मनी, इटली ने बाद में राष्ट्रसंघ की सदस्यता का परित्याग कर दिया। धीरे-धीरे कुछ अन्य देश भी राष्ट्रसंघ से अलग हो गए। इस प्रकार राष्ट्रसंघ कुछ राष्ट्रों का संगठन बनकर रह गया जिनपर यूरोपीय देशों का प्रभुत्व अधिक था । जो राष्ट्र विश्वशांति को भंग कर रहे थे उनपर राष्ट्रसंघ का कोई नियंत्रण नहीं था ।
(ii) राष्ट्रसंघ के सदस्य राष्ट्रों की परस्पर विरोधी नीतियाँ :- सदस्य राष्ट्र की परस्पर विरोधी नीतियाँ भी राष्ट्रसंघ की असफलता का प्रमुख कारण थीं। फ्रांस चाहता था कि राष्ट्रसंघ वर्साय की संधि को अपनी पूर्ण शक्ति के साथ लागू करे। दूसरी ओर ब्रिटेन अपने व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जर्मनी के प्रति उदारता की नीति का अनुसरण कर रहा था। सोवियत रूस भी राष्ट्रसंघ को संदेह की दृष्टि से देखता था तथा उसकी नीतियों से असंतुष्ट था, क्योंकि पश्चिमी राष्ट्रों ने साम्यवादी क्रांति को कुचलने का प्रयास किया था।
(iii) राष्ट्र संघ का वर्साय की संधि से जुड़ा होना :- वर्साय संधि की प्रथम 26 धाराओं में राष्ट्रसंघ का विधान था । इस प्रकार यह वर्साय संधि का अंग बन गया था। कई राष्ट्र वर्साय संधि को आरोपित, प्रतिरोधात्मक, कठोर और अपमानजनक मानते थे । वे इस संधि को मानने के लिए तैयार नहीं थे। चूँकि राष्ट्रसंघ का उद्देश्य इन संधियों को लागू करना था । अतः वे राष्ट्रसंघ से भी उतनी ही घृणा करते थे जितनी वर्साय सन्धि से करते थे।
(iv) राष्ट्रसंघ के संविधान की दुर्बलताएँ :- राष्ट्रसंघ के संविधान में भी कुछ ऐसे दोष थे, जो उसकी असफलता के लिए उत्तरदायी थे । राष्ट्रसंघ के सदस्य राष्ट्र उसकी सिफारिशों को मानने के लिए बाध्य नहीं थे। राष्ट्रसंघ के पास अपने निर्णयों को दृढ़ता से लागू करवाने के लिए कोई शक्ति नहीं थी । किसी भी राष्ट्र को अपराधी घोषित करने का निर्णय परिषद् द्वारा सर्वसम्मति से करना पड़ता था जो कि बहुत कठिन कार्य था। राष्ट्रसंघ के पास आय के पर्याप्त साधन नहीं थे। राष्ट्रसंघ के संविधान में युद्ध को पूर्ण निषेध नहीं किया गया था। इन्हीं कारणों से राष्ट्रसंघ असफल रहा।
3. संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रमुख अंगों की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर⇒ संयुक्त राष्ट्रसंघ घोषणा-पत्र (चार्टर) की धारा 7 में उसके जिन छ: अंगों का उल्लेख किया गया है, उनकी भूमिका का वर्णन अग्रवत् है.
(i) महासभा : यह संयुक्त राष्ट्रसंघ का सबसे प्रमुख अंग है। महासभा एक विचार विमर्शीय संस्था है। इसमें सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रायः सभी महत्त्वपूर्ण कार्य इसी अंग के द्वारा सम्पादित होते हैं। जिसके अन्तर्गत राष्ट्रों को सदस्यता प्रदान करना एवं उनके निष्कासन, महासचिव का निर्वाचन एवं अन्य आर्थिक मुद्दों पर निर्णय लिए जाते हैं।
(ii) सुरक्षा परिषद् : यह राष्ट्रसंघ का सबसे महत्त्वपूर्ण एवं शक्तिशाली अंग है। घोषणा-पत्र के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाये रखने का उत्तरदायित्व इसी पर दिया गया है। राजनीतिक विषयों में सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्रसंघ का कार्यपालक अंग है। सुरक्षा परिषद् जहाँ एक ओर अन्तर्राष्ट्रीय तनाव कम करने तथा विवाद शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने में सहायता करती है, वहीं दूसरी ओर आक्रामक देश के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबन्ध एवं सैनिक कार्यवाही भी करती है। सुरक्षा परिषद् के निर्णयों पर पाँच स्थायी सदस्यों का मतैक्य आवश्यक है।
(iii) आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् : इसका उद्देश्य विश्व को अधिक समृद्ध, स्थायी और न्यायपरायण बनाना है। यह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक एवं स्वास्थ्य से सम्बन्धित विषयों पर अध्ययन करती है और इससे सम्बन्धित विभिन्न सूचनाएँ सुरक्षा परिषद् को प्रदान करती है। इसका मुख्य कार्य अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं का सम्बन्ध स्थापित करना है।
(iv) न्यास परिषद् : न्यास पद्धति का तात्पर्य यह है कि उन्नत एवं विकसित राष्ट्र अव्यवस्थित एवं अविकसित क्षेत्रों का शासन धरोहर के रूप में सम्भाले जो अपना शासन स्वयं करने तथा अपने हितों की देखभाल में सक्षम नहीं हैं। यह परिषद् उन प्रदेशों में जहाँ अभी तक पूर्ण स्वतंत्र शासन नहीं, वहाँ के निवासियों के हितों की रक्षा के लिए अन्तर्राष्ट्रीय न्यास कार्य करती है । उदाहरण के लिए प्रशांत महासागर में स्थित माइक्रोनेशिया के चार द्वीप समूह इसी संगठन के निर्देश पर संयुक्त राज्य अमेरिका के शासन में हैं।
5. संयुक्त राष्ट्रसंघ की महत्ता को रेखांकित कीजिए ।
उत्तर⇒ संयुक्त राष्ट्रसंघ से विश्वयुद्ध को रोकने, विनाश की भीषणता को अवरुद्ध करने, न्याय, कानून एवं व्यवस्था को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। अनेक अवसरों पर युद्धों का निवारण कर गंभीरतम अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का समाधान कर तीसरे विश्वयुद्ध को छिड़ने से रोका है। आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्रसंघ को उल्लेखनीय सफलता मिली है। इससे सम्बद्ध विशिष्ट संस्थानों ने शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किये हैं। एक ओर जहाँ अविकसित और विकासशील देशों को आर्थिक सहायता दी गई है, वहाँ दूसरी ओर अधिकारों की रक्षा भी की गई है। स्वास्थ्य, श्रम और चिकित्सा के क्षेत्र में भी अनेक कार्य किये गये हैं। मादक पदार्थों को रोकने, दास श्यावृति के निवारण तथा बच्चों को सुरक्षित रखने के सम्बन्ध में विशेष प्रस्तान पारित किए गये हैं।
संयुक्त राष्ट्रसंघ की सबसे बड़ी महत्ता यह है कि इसने राष्ट्रों को अपनी शिकायतें पेश करने के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय मंच दिया है। इससे राष्ट्रों के बीच मिल-जुलकर रहने तथा सहयोगपूर्ण सम्बन्धों की परम्परा चल पड़ी है। प्रत्येक राष्ट्र अपने को विश्व – व्यवस्था का एक अंग मानने लगा है। छोटे राष्ट्र भी अपने को सुरक्षित मानने लगे हैं क्योंकि बड़े राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय निन्दा के भय से उनपर आक्रमण करने से हिचकिचाते हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने अन्तर्राष्ट्रीयता के प्रचार में अपने प्रभाव का उल्लेखनीय ढंग से उपयोग किया है और अन्तर्राष्ट्रीय प्रवृत्तियों को अधिक स्पष्ट एवं सबल बनाया है।
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