Class 9th History

Class 9th History Chapter Wise Short Long Type Question | इतिहास की दुनिया चैप्टर नाम- “नाजीवाद (Nazism)का प्रशन


Class 9th – कक्षा 9वीं

विषय – इतिहास की दुनिया

Short Long Question (लघु दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)

चैप्टर का नाम- नाजीवाद (Nazism) 


लघु उत्तरीय प्रश्न ⇒


1. तानाशाह से आप क्या समझते हैं

उत्तर⇒ जो शासक मनमाने ढंग से शासन चलाता है, उसे तानाशाह कहा जाता है। इटली में बेनिटो मुसोलिनी और जर्मनी में हिटलर तानाशाह के उदाहरण हैं।


2. वर्साय संधि से आप क्या समझते हैं? 

उत्तर⇒ प्रथम विश्वयुद्ध के बाद विजेता देशों ने पराजित जर्मनी के साथ 28 जून, 1919 को पेरिस के उपनगर वर्साय में जो संधि की, उसे वर्साय की संधि कहा जाता है। पराजित जर्मनी को इस संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया गया था।


3. तुष्टिकरण की नीति से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर⇒ तुष्टिकरण की नीति का तात्पर्य है किसी को खुश करने के लिए नीति अपनाना । उदाहरण के लिए पश्चिमी देशों ने फासिस्टों के प्रति दूसरे महायुद्ध से पूर्व विदेश नीति अपनाई। इससे जर्मनी, जापान तथा इटली के हौसले बढ़ते गये तथा फासिस्ट बाद का उदय एवं प्रसार हुआ।


4. वाइमर गणराज्य से आप क्या समझते हैं? 

उत्तर⇒ जर्मनी के शासक कैसर विलियम द्वितीय के त्यागपत्र देने के बाद समाजवादी प्रजातांत्रिक दल ने फ्रेडरिक एबर्ट के नेतृत्व में गणतंत्र की स्थापना की। इसके बाद संविधान सभा की प्रथम बैठक 5 फरवरी, 1919 को वाइमर नामक स्थान पर हुई। इसलिए यह संविधान वाइमर संविधान या वाइमर गणतंत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।


5. साम्यवाद से आप क्या समझते हैं? 

उत्तर⇒ साम्यवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसके अन्तर्गत वर्गविहीन समाज, सर्वहारा का शासन एवं उत्पादन के सभी साधनों पर सरकार का एकाधिकार होता है। ऐसी व्यवस्था में उत्पादन निजी लाभ के लिए न होकर सारे समाज के लिए होता है।


6. तृतीय राइख से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर⇒ राष्ट्रपति हिंडेनबर्ग ने 30 जनवरी, 1933 को हिटलर को जर्मनी का चांसलर मनोनीत किया। इस प्रकार, जर्मन गणतंत्र की समाप्ति हुई और नात्सी क्रांति की शुरुआत हुईं, जिसे हिटलर ने “तृतीय राइख” का नाम दिया।


7. वर्साय की संधि ने हिटलर के उदय की पृष्ठभूमि तैयार की, कैसे ? 

उत्तर⇒ वर्साय की संधि को हिटलर के उत्थान का प्रमुख कारण बतलाया जाता है। यह संधि जर्मनी की दृष्टि से अत्यंत कठोर एवं अपमानजनक संधि थी। इस संधि के प्रति जर्मन जनता में तीव्र असंतोष था और हिटलर इस संधि का प्रबल विरोधी था । इस संधि के परिणामस्वरूप जर्मनी की स्थिति इतनी दयनीय हो गयी कि सारा देश निराश हो गया था। यह निराशा पुराने लोगों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि जर्मन युवक भी अपने राष्ट्रीय संकट से पूर्णरूपेण अभिज्ञ होते हुए भी अपनी पितृभूमि के पुनरोद्भव के लिए व्याकुल थे। वे अनुभव करते थे कि जर्मनी के दुःखों का एकमात्र कारण वर्साय संधि है, जिससे जर्मन राष्ट्र का घोर अपमान और उसके साथ महान् अन्याय हुआ था । वर्साय – संधि जर्मनी के माथे पर काले धब्बे के समान था। जर्मन लोग अपने गौरव को पुनः प्राप्त करना चाहते थे और वे एक ऐसे नेता की खोज में थे, जो देश के अपमान को धोकर उसके राष्ट्रीय गौरव का पुनरुत्थान कर सके।


8. वाइमर गणतंत्र नाजीवाद के उदय में सहायक वना, कैसे ? 

उत्तर⇒ वाइमर गणतंत्र की सरकार ने वर्साय की आरोपित और अपमानजनक संधि को स्वीकार किया था। विभिन्न राजनीतिक दलों के कारण गणतंत्र शक्तिशाली और सुदृढ़ शासन व्यवस्था स्थापित नहीं कर सका। गणतंत्र जर्मन जनता की उग्र राष्ट्रवादी महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण नहीं कर सकी। जर्मनी की पूर्वी सीमान्त की समस्या, छीन लिये गये उपनिवेशों की पुनः प्राप्ति, आस्ट्रिया के साथ एकीकरण आदि कुछ ऐसे प्रश्न थे, जिन्हें गणतंत्र सुलझाने में समर्थ नहीं हुआ । हिटलर ने इन परिस्थितियों का लाभ उठाया तथा गणतंत्रीय सरकार को बदनाम किया। उसने जनता को आश्वासन दिया कि नाजीवादियों की सरकार बनने पर जर्मनी के लिए अधिक आक्रामक विदेश नीति का पालन किया जाएगा और जर्मनी की खोयी हुई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित की जायेगी ।


9. नाजीवाद कार्यक्रम ने द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि तैयार की, कैसे ? 

उत्तर⇒ 1934 में नाजी नेता हिटलर जर्मनी का राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री दोनों ही था। अब जर्मनी में एक पार्टी और उसके नेता के अधीन एकतंत्र स्वेच्छाचारी शासन स्थापित हो गया था। नाजीवाद का सारा कार्यक्रम आतंक के सहारे चल रहा था । हिटलर ने वर्साय संधि की प्रावधानों को समाप्त करना शुरू कर दिया। उसने जुर्माने की राशि देने से इन्कार कर दिया। सारे कोयला क्षेत्र से फ्रांस को खदेड़ दिया। उसने जर्मनी से कम्युनिस्टों को भगा दिया। उसने जर्मनी के विजय अभियानों को एक-एक कर आगे बढ़ाना शुरू किया। इसमें उसे कुछ हद तक सफलता भी मिली। परन्तु उसने जब पोलैंड पर आक्रमण किया तो जर्मनी के विरोध में इंगलैंड, फ्रांस, रूस और अमेरिका उठ खड़े हुए। जर्मनी के साथ इटली और जापान खड़े हो गये।


9. क्या साम्यवाद के भय ने जर्मन पूँजीपतियों को हिटलर का समर्थक बनाया ? 

उत्तर⇒ हिटलर ने पूँजीपतियों के विरुद्ध साधारण जनता की भावनाओं को उभारा। यद्यपि उनका वोट उसके लिए सुरक्षित था, फिर भी चुनाव में विजय प्राप्त करने के लिए, पूँजीपतियों के समर्थन की आवश्यकता थी । साम्यवाद के विरुद्ध उनकी भावना को उभारकर वह उनके समर्थन को आसानी से प्राप्त कर सकता था। इसीलिए नात्सियों की सफलता का एक कारण जर्मनी में साम्यवाद का बढ़ता हुआ खतरा बतलाया जाता था। हिटलर जानता था कि साम्यवादी पार्टी उसके रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा है किन्तु यह रोड़ा केवल पूँजीपतियों के समर्थन से ही नहीं हटाया जा सकता था, इसके लिए जनसाधारण का समर्थन भी आवश्यक था। हिटलर साम्यवाद के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की बातें करके जर्मन जनता के दिलों में डर बैठाये रहता था। वह उनसे कहा करता था कि साम्यवाद का अन्तरराष्ट्रीयता का सिद्धांत जर्मन राष्ट्रीयता के लिए सबसे अधिक खतरनाक है।


11. रोम-वर्लिन टोकियो धुरी क्या है ? 

उत्तर⇒ हिटलर की कार्यवाहियों ने यूरोप के अनेक देशों को जर्मनी का दुश्मन बना लिया। यूरोप के राज्य उसकी उम्र नीति से इतना डर गये कि वे परस्पर मिलकर जर्मनी के विरुद्ध गुटबन्दी करने लगे । अन्तरराष्ट्रीय जगत में जर्मनी अकेला पड़ा हुआ था। इस स्थिति का अन्त कर जर्मनी के मित्र प्राप्त करना हिटलर की विदेश नीति का दूसरा कदम था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हिटलर मित्रों की तलाश करने लगा। इटली और जर्मनी दोनों एक ही सिद्धांत में विश्वास करते थे और राज्य-व्यवस्था की दृष्टि से ये दोनों राष्ट्र एक सदृश थे। जर्मन इटालियन गठबन्धन के लिए अबीसीनिया संकट बड़ा ही अच्छा अवसर सिद्ध हुआ। 25 अक्टूबर, 1936 को जर्मनी और इटली के बीच समझौता हो गया। संसार में जर्मनी का एक और मित्र हो सकता था और वह था जापान । नवम्बर, 1936 में साम्यवाद के विरुद्ध दोनों देशों (जर्मनी और जापान) ने एक समझौता कर लिया। 1937 में इटली भी इस संधि में शामिल हो गया। रोम-बर्लिन धुरी अब रोम-बर्लिन – टोकियो धुरी में परिणत हो गई।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ⇒


 1. हिटलर के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालें। 

उत्तर⇒ हिटलर का पूरा नाम एडोल्फ हिटलर था। उसके पिता गरीब थे, इसलिए बचपन में उसे उचित शिक्षा नहीं मिल सकी। पिता की मृत्यु के बाद वह वियना में एक शिल्पी का काम करने लगा। 1912 में वह म्यूनिख चला गया और चित्रकारी करके अपना जीवन निर्वाह करने लगा। इसी समय प्रथम विश्वयुद्ध प्रारंभ हो गया । वह जर्मन सेना में भर्ती हो गया। युद्ध में उसने अपूर्व योग्यता दिखलायी, जिसके लिए उसे “सावरन फ्रांस” भी प्राप्त हुआ । युद्ध में घायल होकर जिस समय वह पामरेनिया के अस्पताल में पड़ा हुआ था, उसी समय उसे विराम- सन्धि की सूचना मिली। यह सुनकर बड़ा आहत हुआ। उसने राजनीति में प्रवेश करने का निश्चय किया। 

हिटलर की सफलता का प्रमुख कारण स्वयं हिटलर का व्यक्तित्व था। वह एक बहुत अच्छा वक्ता और लेखक भी था । उसमें बड़ी-बड़ी भीड़ को अपने भाषण के जादू से मुग्ध कर सकने की क्षमता थी । नेता (फ्यूरर) बनने के सभी गुण उसमें मौजूद थे। वह अपने कार्यों को संगठित रूप से करता था। आधुनिक युग की राजनीति में प्रचार का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 

कुछ साथियों के साथ वह जर्मन वर्कर्स पार्टी का एक सदस्य बन गया और उस पार्टी को संगठित करने का संकल्प लिया। हिटलर के प्रवेश से उस पार्टी की प्रगति होने लगी । जर्मन वर्कर्स पार्टी का नाम बदलकर राष्ट्रीय समाजवादी पार्टी रखा गया। वह स्वयं उसका नेता बना। उसने पार्टी के कार्यक्रम जनता के सामने रखा। उसके जोशीले भाषण और संगठन के तरीके से नात्सी पार्टी का उत्थान होने लगा। जर्मनी की निकम्मी सरकार के विरुद्ध विद्रोह का झंडा खड़ा किया। परन्तु हिटलर का यह प्रयास असफल रहा। उसे पकड़ लिया गया और उसे पाँच वर्ष की सजा हो गई। जेल में उसने विश्वविख्यात पुस्तक “मैन कैम्प (मेरा संघर्ष) लिखी – जो आगे चलकर नात्सियों का बाइबिल बन गयी। 

1924 में वह जेल से छूटकर बाहर आया। 1925 से 1929 की अवधि में उसने अपनी पार्टी को संगठित किया। 1933 में हिटलर जर्मनी का प्रधानमंत्री बना । 2 अगस्त, 1934 को राष्ट्रपति की मृत्यु के बाद वह राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों ही बन गया। 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ गया और 1945 तक चलता रहा। 1 मई, 1945 को हिटलर ने आत्महत्या कर ली।


2. हिटलर की विदेश नीति जर्मनी की खोई प्रतिष्ठा को प्राप्त करने का एक साधन था, कैसे ? 

उत्तर⇒ जर्मनी की खोई हुई प्रतिष्ठा को प्राप्त करने के लिए अपनी विदेश नीति को एक साधन के रूप में निम्नलिखित कदम उठाए- 

(i) राष्ट्रसंघ से पृथक होना : राष्ट्रसंघ की सदस्यता हिटलर के अनुसार, जर्मनी के माथे पर एक कलंक का टीका था। 1933 में हिटलर ने निःशस्त्रीकरण की माँग की। माँग नहीं माने जाने पर राष्ट्रसंघ की सदस्यता छोड़ दी । 

(ii) वर्सायसंधि को भंग करना : वर्साय संधि का पंचम भाग जर्मनी के लिए एक दूसरा कलंक था। इस भाग के द्वारा जर्मनी की सैन्य शक्ति को सीमित कर दिया गया। तृतीय रीह के लिए यह बड़े अपमान की बात थी । हिटलर ने इसको मानने से इन्कार कर दिया और जर्मनी में अनिवार्य सैनिक सेवा आरंभ की। 

(iii) क्षतिपूर्ति की समस्या : वर्साय संधि के द्वारा जर्मनी को प्रथम विश्वयुद्ध के लिए दोषी ठहराया गया था और उसी आधार पर जर्मनी पर एक बहुत बड़ी रकम क्षतिपूर्ति के नाम पर लाद दी गई थी। हिटलर ने क्षतिपूर्ति और युद्ध अपराध को मानने से इन्कार कर दिया। 

(iv) पोलैंड के साथ समझौता : हिटलर ने 1934 में पोलैंड के साथ दसवर्षीय अनाक्रमण संधि कर समझौता कर लिया। इसका उद्देश्य पेरिस की शांति परिषद् द्वारा पोलैंड के अधीन कर दिये गये प्रदेश को पुनः प्राप्त करना और आस्ट्रिया एवं जर्मनी के राज्यों को मिलाकर एक विशाल जर्मन राज्य की स्थापना करना था। 

(v) ब्रिटेन से समझौता: जून, 1935 में ब्रिटेन और जर्मनी के बीच एक समझौता हुआ जिसके अनुसार जर्मनी अपनी सैन्य शक्ति (स्थल और वायु) में वृद्धि कर सकता है। बशर्ते कि जर्मनी अपनी नौसेना पैंतीस प्रतिशत से अधिक न बढ़ाए। हिटलर की यह एक बड़ी कूटनीतिक विजय थी। 

(vi) रोम – वर्लिन धुरी: 25 अक्टूबर, 1935 को जर्मनी और इटली के बीच समझौता हो गया। इस प्रकार जर्मनी को मित्र प्राप्त करने का हिटलर की विदेश नीति का लक्ष्य पूरा हो गया ।


3. नाजीवादी दर्शन निरंकुशता का समर्थक एवं लोकतंत्र का विरोधी था। विवेचना कीजिए । 

उत्तर⇒ नाजीवाद फासिज्म का जर्मन रूप था। नाजीवाद का प्रवर्तक और प्रधान नेता एडोल्फ हिटलर था। हिटलर द्वारा 1921 में स्थापित की गई ” नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी” के प्रथम अक्षरों NAZI से “नाजीवाद ” (NAZISM) शब्द बना है । हिटलर के नेतृत्व में नाजी पार्टी ने न केवल जर्मनी पर शासन किया, बल्कि सम्पूर्ण यूरोप की राजनीति को अपने कार्य-कलापों से प्रभावित किया। एडोल्फ हिटलर के नेतृत्व में नाजियों ने आधुनिक युग की सबसे बर्बर तानाशाही स्थापित की। 

नाजीवादी दर्शन में सर्वसत्तावादी राज्य की संकल्पना है। इसके अनुसार राज्य के भीतर ही सब कुछ है, राज्य के बाहर एवं विरुद्ध कुछ नहीं है। जर्मनी का सर्वेसर्वा बनने के बाद हिटलर ने एक दल, एक नेता और एक तंत्र की स्थापना की। लोकसभा में केवल नाजी दल के सदस्य थे और वे वहाँ केवल भाषण सुनते थे और प्रस्तावों को आँखें मींचकर पास कर देते थे। हिटलर ने नाजीदल को छोड़कर सभी दलों को समाप्त कर दिया । नाजीवाद राजा की निरंकुश शक्ति पर बल प्रदान करता है। जर्मनी में हिटलर ने निरंकुश शक्ति का सहारा लिया। सत्ता में आते ही उसने गुप्तचर पुलिस ” गेस्टापो” का संगठन किया जिसका आतंक पूरे जर्मनी पर छा गया। उसने विशेष कारागृह की स्थापना की जिसके माध्यम से राजनीतिक विरोधियों का दमन किया गया। अब जर्मनी में एक पार्टी थी- नाजी पार्टी एवं एक नेता था — हिटलर । 

नाजीवाद में उदारवाद एवं लोकतंत्र का कट्टर विरोध की अवधारणा है। अतः हिटलर ने सत्ता प्राप्त करते ही नागरिकों की सभी प्रकार की स्वतंत्रताएँ छीन ली। प्रेस तथा वाक् अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा दिया। श्रमिक संघ तोड़कर उनकी सम्पत्ति जब्त कर ली। सभी संघों को एक करके उनका अध्यक्ष एक नाजी दल के नेता को बनाया गया। शिक्षण संस्थाओं में नाजी सिद्धांतों के अनुरूप ही शिक्षा दी जाती थी और उनपर कठोर नियंत्रण था। किसी को भी नाजी सरकार की आलोचना करने का अधिकार नहीं था । यदि किसी पर नाजी विरोधी होने का तनिक भी संदेह होता था तो उसे कारागृह में डालकर यातनाएँ दी जाती थीं । हिटलर की नीति का विरोध करने वाले को भी दण्ड दिया जाता था। इस प्रकार हिटलर ने जर्मनी में तानाशाही शासन स्थापित और नाजीवादी दल के वर्चस्व को बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी


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