Class 9th History

Class 9th History Chapter Wise Short Long Type Question | इतिहास की दुनिया चैप्टर नाम- “कृषि और खेतिहर समाज (Agriculture and Agriculturist Society)का प्रशन


Class 9th – कक्षा 9वीं

विषय – इतिहास की दुनिया

Short Long Question (लघु दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)

चैप्टर का नाम- कृषि और खेतिहर समाज (Agriculture and Agriculturist Society)


लघु उत्तरीय प्रश्न ⇒


1. भारत में मुख्यत: कितने प्रकार की खेती होती है? 

उत्तर⇒ भारत में मुख्यतः चार प्रकार की खेती होती है। 

(i) झूम खेती: आज भी पहाड़ी क्षेत्रों में बहुत-से आदिवासी समाज में झूम खेती प्रचलित है। इसके तहत, कृषक पारम्परिक खेती करते हैं। फसल उत्पादन से ही कुछ बीज वे अगले फसल के लिए रख देते हैं। 

(ii) पारंपरिक खेती : आज भी भारत के कुछ क्षेत्रों में पारंपरिक खेती प्रचलित है। इसके तहत कृषक पारंपरिक खेती करते हैं। फसल उत्पादन से ही कुछ बीज वे अगले फसल के लिए रख देते हैं। 

(iii) गहन खेती : गहन खेती का तात्पर्य है, एक ही खेत में अधिक फसल उगाना । जिन क्षेत्रों में सिंचाई संभव है, उन क्षेत्रों में कृषक उर्वरकों, कीटनाशकों और कृषि यंत्रों का प्रयोग कर कृषि उत्पादन में वृद्धि की है। 

(iv) रोपण खेती : रोपण कृषि एक विशेष प्रकार की झाड़ी कृषि है। यह एकल फसल कृषि है। इसमें रबर, कहवा, चाय, नारियल, केला, सेब, अंगूर, संतरा आदि उगाई जाती है।


2. रबी फसल और खरीफ फसल में क्या अन्तर है? 

उत्तर⇒ रबी फसलें वसंत ऋतु की फसल है जिनकी बुआई 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर के बीच होती है तथा ये फसलें मार्च-अप्रैल तक तैयार हो जाती हैं। इस मौसम में गेहूँ, जौ, चना, अरहर, मटर, मसूर, खेसारी, सरसों आदि फसलें उगाई जाती हैं। गेहूँ सर्वप्रमुख रबी फसल है। इन फसलों के उत्पादन में सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है । 

जबकि खरीफ फसलों का मौसम मानसूनी वर्षा के प्रारंभ (15 जून से 15 अक्टूबर तक) से शुरू होता है जो शीत ऋतु के आरंभ तक (नवम्बर-दिसम्बर) रहता है। इस मौसम में धान, ज्वार – बाजरा, मक्का, कपास, तिल, मूँगफली, जूंट, गन्ना, तम्बाकू, मूँग, उड़द आदि फसलें उगाई जाती हैं।


3. पादप संकरण क्या है? 

उत्तर⇒ दो किस्म के पादपों को मिलाकर एक नया उच्च किस्म का पादप या उसके बीजों का विकास पादप-संकरण कहलाता है। इस बीज से कम समय में अच्छी फसल प्राप्त होती है। पादप-संकरण के द्वारा कम वांछित गुण वाले पौधा काफी अधिक वांछित गुणवाले पौधों के साथ परागण करवा कर उन्नत किस्म का बीज प्राप्त किया जाता है। खाद्यान्न से लेकर फल-फूलों तथा सब्जियों तक के बीजों का संकरण कराकर उनकी उच्च कोटियाँ तैयार की गई हैं। इससे कृषि उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है।


4. मिश्रित खेती क्या है ? 

उत्तर⇒ एक ही मौसम में एक ही खेत में दो या दो से अधिक फसलों को एक साथ बोने की पद्धति को मिश्रित खेती कहते हैं। इस प्रकार के फसलों को बोने के समय यह ध्यान रखना चाहिए कि जो फसलें एक साथ बोई जा रही हैं, उनका वर्धनकाल अलग-अलग हो। साथ ही एक फसल पर्याप्त जल की आवश्यकता वाली फसल हो, तो दूसरी कम जल की आवश्यकता वाली फसल हो तथा एक खाद्य फसल हो तो दूसरी-तीसरी दलहन, तिलहन वाली फसल हो । इस तरह से की गई खेती में फसलें एक साथ बोई जाती हैं, परन्तु अलग-अलग समय में काटी जाती है।


5. हरित क्रांति से क्या समझते हैं ? 

उत्तर⇒ भारत की नई कृषि नीति 1967-68 में कुछ क्षेत्रों में लागू की गयी, जिसमें अधिक उपज देनेवाले बीजों को बोया गया तथा कृषि की नई तकनीकों को अपनाया गया जिसके फलस्वरूप कृषि उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई, इसे हरित क्रांति कहा जाता है । हरित क्रांति के परिणामस्वरूप भारत में खाद्यान्नों का उत्पादन बहुत बढ़ गया है जिससे भारत खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर हो गया है । हरित क्रांति के प्रभाव से कृषि उत्पादन एवं कृषि उत्पादकता दोनों में वृद्धि हुई है । परन्तु इसका प्रभाव कुछ फसलों, विशेष रूप से गेहूँ तक सीमित रहा है। हरित क्रांति से किसान जड़ता के भँवर से बाहर निकल आया है, परन्तु सभी किसानों को इसका लाभ समान रूप से प्राप्त नहीं हो सका है।


6. गहन खेती से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर⇒ गहन खेती का तात्पर्य है, एक ही खेत में अधिक फसल लगाना। दूसरे शब्दों में, एक कृषि वर्ष में ही उपलब्ध भूमि पर सभी मौसम में फसल लिया जाना गहन खेती कहलाता है। उदाहरण के लिए एक किसान के पास 10 एकड़ भूमि है जिसपर खरीफ मौसम में पूरे 10 एकड़ भूमि पर फसल लेता है तथा रबी मौसम में पुनः 6 एकड़ भूमि पर फसल लेता है, इस प्रकार वर्ष भर में वह 10 +6 एकड़ भूमि पर फसल प्राप्त करता है। जबकि उसके पास वास्तविक भूमि 10 एकड़ ही है । ऐसे क्षेत्रों में समय की बचत करना अनिवार्य है ताकि दूसरी फसल बोयी जा सके, जिससे वह भी निश्चित ऋतु पर पककर तैयार हो जाये। गहन खेती का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि भूमि किसी भी मौसम में खाली नहीं रहता है। किसान वर्ष भर काम में लगे रहते हैं। एक ही वर्ष में दो-तीन फसल लेने से उनकी आय भी बढ़ती है।


7. झूम खेती से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर⇒ सभ्यता के आरंभिक काल में जहाँ जंगल का बाहुल्य था वहाँ के लोगों ने जंगल को काटकर खेती करना प्रारंभ किया। आज भी पहाड़ी क्षेत्रों में वन्य समाज के लोगों में झूम खेती या स्थानान्तरी खेती प्रचलित है। इस प्रकार की खेती में वर्षा से पहले जंगल को काटकर तथा झाड़ियों एवं छोटे पेड़ों को जलाकर खेती के लायक तैयार कर लिया जाता था। जले हुए राख पर बरसात के प्रारंभ में खुरपी या कुदाल की मदद से उसमें बीज डाल दिया जाता था । वर्षा होने पर बीज से पौधे निकल आते थे। इस भूमि पर दो-तीन साल खेती करने के बाद जब उसकी उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाती थी तब दूसरी जगह इसी प्रक्रिया द्वारा खेत तैयार कर लिया जाता था । तब तक छोड़े गये स्थान में पौधे उग आते थे और वृक्ष लहराने लगते थे। इससे वननाशन नहीं होता था । इस प्रकार की खेती में न्यूनतम श्रम तथा पूँजी का विनियोग होता था ।


8. फसल चक्र के बारे में लिखें। 

उत्तर⇒ भूमि के किसी एक टुकड़े पर उसकी उर्वरता बनाए रखने तथा उर्वरता बढ़ाने के लिए विभिन्न फसलों के क्रमबद्ध आवर्तन की प्रक्रिया को “फसल चक्र” कहा जाता है। किसानों ने अपने अनुभव से जान लिया है कि मृदा के उपजाऊपन को बनाये रखने के लिए खेत पर एक ही फसल बार-बार न ली जाये, बल्कि खाद्यान्न फसल के बाद उसी खेत में कोई भी फली वाली फसल उपजायी जाये जिससे मृदा के उपजाऊपन को बनाये रखा जा सकता है। फलियाँ वायुमंडल से नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती रहती हैं एवं मृदा को पोषक तत्त्वों को वापस कर देती हैं, विशेषकर नाइट्रोजन को । दालों एवं तिलहन के पौधों में यह विशेषता पायी जाती है।


9. रोपण या वागानी खेती से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर⇒ कृषि की वह पद्धति जिसमें बड़े पैमाने पर एक ही फसल की खेती, कुशल श्रमिकों की मदद से कारखाना (फैक्ट्री) व्यवस्था अपनाकर मुख्यतः व्यापार के लिए की जाती है, रोपण या बागानी कृषि कहलाती है। जैसे – चाय, कहवा, गन्ना, रबड़ आदि। यह एक विशेष प्रकार की झाड़ी खेती अथवा वृक्ष खेती है। यह एक फसल खेती है। इस प्रकार की खेती में अधिक पूँजी तथा कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इसमें कृषि फार्म बड़े-बड़े होते हैं। इस प्रकार की खेती में आधुनिक यंत्रों और मशीनों का उपयोग होता है।


10. वर्तमान समय में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के उपाय बताएँ। 

उत्तर⇒ भारतीय समाज प्राथमिक रूप से ग्रामीण समाज है। 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 65 प्रतिशत लोग गाँव में रहते हैं। उनका जीवन कृषि एवं उससे सम्बन्धित व्यवसायों से चलता है। अतः ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है । परन्तु कृषि की दशा शोचनीय है। फलतः ग्रामीण अर्थव्यवस्था पिछड़ी हुई अवस्था में है। इसलिए वर्तमान समय में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में परिवर्तन की आवश्यकता है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के उपाय के रूप में ये कदम उठाए जाने चाहिए—

(i) भूमि सुधार किया जाना चाहिए,

(ii) कृषि में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए,

(iii) युवा पीढ़ी में कृषि के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन किया जाना चाहिए, कृषि को उद्योग का दर्जा दिया जाना चाहिए।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ⇒


1. भारत एक कृषि प्रधान देश है, कैसे ? 

उत्तर⇒ भारत प्राचीन काल से एक कृषि प्रधान देश रहा है। कृषि हमारे देश की आधारशिला है। हमारी श्रमशक्ति कृषि से ही आजीविका कमाती है। हमारे देश की कुल राष्ट्रीय आय का लगभग 25 प्रतिशत कृषि से ही प्राप्त होता है। देश की 65 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में निवास करती है और इसका मुख्य कार्य कृषि है। कुल श्रमिकों में 65 प्रतिशत भाग कृषि श्रमिक ही हैं। भारत की 1.25 अरब से अधिक की विशाल आबादी के लिए भोजन की पूर्ति कृषि से होती है। पशुओं की संख्या भारत में सबसे अधिक है। यहाँ के लगभग 22 करोड़ पशुओं का भोजन भी कृषिजन्य पदार्थों से प्राप्त होता है। भारत के कृषि आधारित बड़े उद्योगों, जैसे – सूती वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग, जूट उद्योग, कागज उद्योग, तिलहन उद्योग आदि को कच्चा माल कृषि से ही प्राप्त होती है। कृषि उत्पादों पर आधारित इन उद्योगों का राष्ट्रीय आय में बड़ा योगदान है। इनमें बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देने की संभावना छिपी है। भारत के निर्यातों में कृषि पदार्थ एवं कृषिगत वस्तुओं की प्रधानता होती है। भारतीय कृषि न केवल परम्परागत व्यवसाय है अपितु जीवनयापन का तरीका भी है। कृषि वास्तव में भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है । हमारे देश में कुल भूमि का लगभग 54 प्रतिशत भाग कृषि के अन्तर्गत है। कृषि की महत्ता को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने इसके विकास एवं उन्नति के लिए विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से इसके आधुनिकीकरण का प्रयास किया है। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है।


2. कृषि में वैज्ञानिक दृष्टिकोण कृषि के लिए लाभदायक है, कैसे ? 

उत्तर⇒ अभी भी हमारे देश के अधिकांश हिस्सों में खेती की प्राचीन एवं अवैज्ञानिक प्रणाली, पुराने औजारों का प्रयोग, सिंचाई की सुविधाओं का अभाव, उन्नत बीजों की कमी, उत्तम खाद का अभाव आदि की समस्या है। अभी देश में वैज्ञानिक तरीके की खेती का कम विस्तार हो सका है। फलतः कृषि की उत्पादकता बहुत ही कम है। अतः उपज में वृद्धि करने के लिए खेती की आधुनिक एवं वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग किया जाना चाहिए। साथ ही नवीन वैज्ञानिक यंत्रों का प्रयोग भी होना चाहिए। ट्रैक्टर के अतिरिक्त फसल बोने, काटने इत्यादि के नये यंत्रों और उपकरणों के प्रयोग से कृषि उपज में वृद्धि की जा सकती है। कृषि में वैज्ञानिक दृष्टिकोण किसानों के लिए काफी लाभदायक होगा। पारम्परिक कृषि से कृषकों की उपज अच्छी नहीं होती है। एक ही बीज का बार-बार प्रयोग करने से बीज की गुणवत्ता क्षीण हो जाती है। एक ही प्रकार के खाद्यान्न लगाने से मृदा की उर्वरा शक्ति क्षीण हो जाती है। सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भरता से अनावृष्टि या अतिवृष्टि से फसल नष्ट हो जाते हैं। 

कृषि में वैज्ञानिक पद्धति के आने से उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई है। पादप संकरण के द्वारा उत्तम किस्म का बीज प्राप्त किया गया है। इस बीज से थोड़े ही समय में अच्छी फसल प्राप्त होती है। उर्वरक का उत्पादन होने से खेतों की उर्वराशक्ति पुनः प्राप्त हो जाती है। कीटनाशी, खरपतवारनाशी आदि का छिड़काव करके फसल को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। सिंचाई के विभिन्न साधन होने से पौधों में नमी बनी रहती है। आधुनिक यंत्रों एवं उपकरणों के उपयोग से समय पर कृषि कार्य संभव हो पाता है एवं समय की बचत होती है। फसल चक्र, बहुफसली कृषि, मिश्रित कृषि आदि के द्वारा कृषि में आशातीत वृद्धि हुई है। इसी कारण 1960 के दशक में हरित क्रांति आयी। इस प्रकार कृषि के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण कृषि के लिए काफी लाभदायक है।


3. विहार की कृषि ” मानसून के साथ जुआ” कहा जाता है, कैसे ? 

उत्तर⇒ बिहार की कृषि मानसून पर निर्भर है, बाढ़ और सुखाड़ यहाँ की नियति है, फिर भी सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं है। यहाँ सकल कृषि की गई भूमि के मात्र 46 प्रतिशत पर ही सिंचाई हो पाती है, शेष भाग सिंचाई से वंचित रह जाता है। 

यद्यपि बिहार में जल का विशाल भण्डार है। बिहार में जल संसाधन का उपयोग मुख्य रूप से सिंचाई में होता है। यहाँ कुल सिंचित भूमि का 40.63 प्रतिशत भाग नहरों द्वारा सिंचित होता है। कुओं से सिंचाई का काम केवल 2 प्रतिशत होता है। तालाबों से 9 प्रतिशत सिंचाई होती है । परन्तु इन साधनों से सिंचाई पर्याप्त नहीं है। अतः किसानों को कृषि के लिए वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता है। मानसून से वर्षा की अवधि मात्र चार महीने की होती है। इसके अलावा अनियमित और असमान वर्षा भी होती है। यहाँ कुछ फसलें शीत ऋतु में होती है और मौसम शुष्क रहता है। गन्ना, आलू, प्याज आदि की खेती में समय पर पानी देने की आवश्यता होती है। मॉनसूनी वर्षा की अनियमितता के कारण कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि का शिकार होना पड़ता है। कभी-कभी अतिवृष्टि के कारण बिहार की नदियों में भयंकर बाढ़ आ जाती है जिससे फसल नष्ट हो जाते । कभी-कभी अनावृष्टि के कारण सुखाड़ पड़ जाता है जिससे फसलें बर्बाद हो जाती हैं। जिस वर्ष मानसून समय पर और पर्याप्त पानी देता है, उस वर्ष फसल अच्छी होती है। जिस वर्ष मॉनसून साथ नहीं देता है, उस वर्ष फसल अच्छी नहीं होती है । उस वर्ष किसान को निराश होना पड़ता है। इसीलिए बिहार की कृषि को मानसून के साथ जुआ कहा गया है।


4. कृषि सामाजिक परिवर्तन का माध्यम हो सकता है, कैसे ? 

उत्तर⇒ भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है। भारतीय समाज प्राथमिक रूप में ग्रामीण समाज है। यहाँ लगभग 67 प्रतिशत लोग गाँव में रहते हैं। उनका जीवन कृषि एवं उससे सम्बन्धित व्यवसायों से चलता है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि बहुत-से भारतीयों के लिए कृषि उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। यह जीने का एक तरीका भी है। हमारी बहुत-सी सामाजिक-सांस्कृतिक रस्मों में कृषि की पृष्ठभूमि होती है। इस रूप में ग्रामीण भारत की सामाजिक एवं सांस्कृतिक संरचना दोनों कृषि एवं कृषक समाज से बहुत निकटता से जुड़ी हुई है । 

यद्यपि कृषि का भारतीय अर्थव्यवस्था में काफी बड़ा योगदान है। फिर भी भारतीय कृषकों की स्थिति उतनी अच्छी नहीं है। कृषक समाज की आर्थिक स्थिति निम्न है। इनकी निम्न आर्थिक स्थिति का प्रधान कारण यह है कि ये सिर्फ उपभोग के लिए उत्पादन करते हैं। सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट करने की जरूरत है। कृषि को उद्योग का दर्जा देकर कृषकों की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। कृषि कार्य को सम्मान देने के लिए भावी पीढ़ी को कृषि के प्रति लगाव पैदा करना होगा। उनके शैक्षिक पाठ्यक्रम में कृषि से सम्बन्धित अध्याय जोड़ने होंगे । कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए तकनीकी एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना होगा। हरित क्रांति इसका एक उदाहरण है। हरित क्रांति कृषि आधुनिकीकरण का कार्यक्रम रहा। नई तकनीक द्वारा कृषि उत्पादकता में अत्यधिक वृद्धि हुई, जिससे कृषकों एवं ग्रामीण संरचना में सकारात्मक परिणाम उभरे। आम कृषकों की आर्थिक स्थिति में सुधार आया। फलस्वरूप उनका जीवन स्तर बदले हैं। ग्रामीण समुदाय के खान-पान, पहनावा ओढ़ावा और रहन-सहन में काफी परिवर्तन आया है । कृषि सामाजिक परिवर्तन का माध्यम हो सकता है। सामाजिक परिवर्तन से कृषि उत्पादन अधिक होगी। कृषि के अधिशेष उत्पादन एवं उद्योग आधारित कच्चे माल का अधिक उत्पादन से कृषकों की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी। अर्थव्यवस्था अच्छी होने से उनके रहन-सहन का स्तर ऊँचा होगा, उच्च शिक्षा की ओर लोग आकर्षित होंगे। आय बढ़ने से यंत्री कृषि शुरू होगी। इस प्रकार समाज में परिवर्तन आएगा।


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