Class 9th Geography (भूगोल) Subjective Question

Class 9th Geography Chapter Wise Short & Long Question | भारत : भूमि एवं लोग (भूगोल) चैप्टर नाम- अपवाह स्वरूप (Drainage Pattern)


Class 9th – कक्षा 9वीं

विषय – भारत : भूमि एवं लोग (Geography)

Objective Question (वस्तुनिष्ठ प्रशन)

चैप्टर का नाम- अपवाह स्वरूप (Drainage Pattern) 


लघु उत्तरीय प्रश्न⇒


1. जल- विभाजक का क्या कार्य है ? एक उदाहरण दीजिए। 

उत्तर ⇒ दो दिशाओं में नदियों के प्रवाह को अलग करनेवाले उच्च पर्वतीय/ पठारी क्षेत्र को जल – विभाजक कहते हैं अर्थात् इसका मुख्य कार्य जलप्रवाह को अलग करना है। सिंधु एवं गंगा नदी के मध्य अरावली की उच्च भूमि जल – विभाजक का एक उदाहरण है।


2. सिंधु एवं गंगा नदियाँ कहाँ से निकलती हैं ? 

उत्तर ⇒ सिंधु नदी तिब्बत में मानसरोवर झील के निकट से ‘सन्गे ल्याब’ नामक झरने से निकलती है, लेकिन गंगा नदी हिमालय के गंगोत्री ग्लेशियर के गोमुख से निकलती है।


3. गंगा की दो प्रारंभिक धाराओं के नाम लिखिए। ये कहाँ पर एक-दूसरे से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती हैं? 

उत्तर ⇒ गंगा की दो प्रारंभिक धाराओं के नाम हैं-भागीरथी तथा अलकनंदा । ये दोनों उत्तराखंड स्थित देवप्रयाग में एक-दूसरे से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती हैं।


4. लम्वी धारा होने के बावजूद तिव्वत के क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र में कम गाद (सिल्ट) क्यों है ? 

उत्तर ⇒ ब्रह्मपुत्र नदी अपने तिब्बती अपवाह क्षेत्र में कम गाद और जल लाती है, क्योंकि यह पर्वतों और चट्टानी क्षेत्रों के ऊपर से होकर बहती हैं, जहाँ वर्ष बहुत कम होती है।


5. कौन-सी दो प्रायद्वीपीय नदियाँ फँसान घाटी से होकर बहती हैं ? समुद्र में प्रवेश करने के पहले वे किस प्रकार की आकृतियों का निर्माण करती हैं? 

उत्तर ⇒ नर्मदा तथा तापी दो प्रायद्वीपीय नदियाँ ऐसी हैं, जो पैंसान घाटी से होकर बहती हैं। अरब सागर में प्रवेश करने के पहले वे चारनमुख (ऐस्चुअरी) का निर्माण करती हैं।


Class 9th Geography Chapter Wise Short & Long Question | भारत : भूमि एवं लोग (भूगोल) चैप्टर नाम- अपवाह स्वरूप (Drainage Pattern) 


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न⇒


1. हिमालय तथा प्रायद्वीपीय भारत की नदियों की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए। 

उत्तर ⇒ हिमालय तथा प्रायद्वीपीय भारत की नदियों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- 

(i) हिमालय की अधिकांश नदियाँ बारहमासी अथवा स्थायी होती हैं। उन्हें वर्षा के जल के अलावे पर्वत की चोटियों पर जमे हिम के पिघलने से सालों भर जलापूर्ति होती रहती है। सिंधु एवं ब्रह्मपुत्र जैसी भारत की प्रमुख नदियाँ हिमालय से निकलती हैं । ये नदियाँ प्रवाह के क्रम में पर्वतों को काटकर गॉर्ज का निर्माण करती हैं। हिमालयजनित नदियाँ उद्गम थल से समुद्र तक की यात्रा के क्रम में अपने मार्ग के ऊपरी भाग में तीव्र अपरदन करती हैं और सिल्ट (गाद), बालू एवं मिट्टी जैसे अपरदित पदार्थों का संवहन करती है। नदियाँ ज्यों-ज्यों आगे बढ़ती हैं, अवसाद की मात्रा बढ़ती जाती है। परिणामस्वरूप नदियाँ विसर्पित होकर गोखुर झील, बाढ़ का मैदान और डेल्टा जैसी अनेक आकृतियों का निर्माण करती है। 

(ii) प्रायद्वीपीय नदियाँ इस प्रकार की अधिकांश नदियाँ मौसमी होती हैं, जिनका मुख्य स्रोत वर्षा का जल हैं। ग्रीष्मऋतु तथा शुष्क मौसम में जब वर्षा नहीं होती है, तो यहाँ की बड़ी-बड़ी नदियों का जल-स्तर घटकर छोटी-छोटी धाराओं या नलिकाओं में परिणत हो जाता है। प्रायद्वीपीय भारत की अधिकांश नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। ये नदियाँ छिछली और कम लंबी होती हैं। ये नदियाँ अनेक जगहों पर जलप्रपात का निर्माण करती हैं।


2. प्रायद्वीपीय पठार के पूर्व एवं पश्चिम की ओर प्रवाहित होनेवाली नदियों की तुलना कीजिए। 

उत्तर ⇒ प्रायद्वीपीय पठार के पूर्व एवं पश्चिम की ओर प्रवाहित होनेवाली नदियों की तुलना निम्नांकित है-

पूर्वी घाट  पश्चिमी घाट 
(i) पूर्व दिशा की ओर बहनेवाली नदियाँ डेल्टा बनाती हैं।  (i) पश्चिम की ओर बहनेवाली नदियाँ डेल्टा नहीं बनाती हैं। 
(ii) पूर्व की ओर बहनेवाली नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। (ii) पश्चिम की ओर बहनेवाली नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं।
(iii) प्रायद्वीपीय पठार की पूर्व की ओर बहनेवाली नदियों की लंबाई अधिक होती है।  (iii) पश्चिम की ओर बहनेवाली नदियों की लंबाई अपेक्षाकृत कम अधिक होती है। 
(iv) पूर्व की ओर बहनेवाली नदियाँ चौरस मैदान का निर्माण करती हैं।  (iv) पश्चिम की ओर बहनेवाली नदियों गहरे गॉर्ज बनाती हैं। 
(v) इस प्रकार की नदियाँ तीव्रगामी नहीं हैं।   (v) इस प्रकार की नदियाँ तीव्रगामी होती हैं। 

3. भारत की अर्थव्यवस्था में नदियों के महत्व पर प्रकाश डालिए। 

उत्तर ⇒ उत्तर भारत की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में नदियों की भूमिकाएँ निम्नलिखित हैं- 

(i) नदियाँ अपने साथ अपरदित सिल्ट, बालु, मिट्टी, वनस्पतियों के अवशेष आदि को बहाकर लाती हैं तथा इसे मध्यवर्ती और डेल्टाई भागों में जमा कर देती है, जो कृषि कार्य के लिए अधिक उपजाऊ मिट्टी होती है। 

(ii) जल यातायात सस्ते साधन उपलब्ध कराते हैं। गंगा, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी, कृष्णा आदि नदियों में परिवहन कार्य किये जाते हैं। 

(iii) नदियाँ जलविद्युत् के निर्माण के लिए उपयोगी है। 

(iv) किसानों को कृषि कार्य के अतिरिक्त अनेक कार्यो के लिए जल उपलब्ध होता है। 

(v) नदियाँ पानी के साथ अनेक खनिज पदार्थ भी लाती हैं, जो हमारी अर्थव्यवस्था के लिए उपयोगी हैं। 

(vi) नदिया पर बाँध बनाकर कई मानवनिर्मित नहर एवं झील का विकास हुआ है। ऐसे नहर एवं झील जलीय जीवों के रहने का उत्तम साधन है। नदियों का जल मत्स्यपालन के लिए उपयोगी है। 

(vii) नादियों के जल को नियंत्रित कर बड़ी-बड़ी नहरें निकाली गई हैं, जो हमारे कृषि कार्य में भरपूर मदद कर अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करती है।


4. भारत में झीलों के प्रकार का वर्णन उदाहरण सहित कीजिए ।

उत्तर ⇒ वर्षा जल के जमाव तथा हिमालयों या हिमखंडों के पिघलने से इशील का निर्माण होता है। झील मुख्यतः प्राकृतिक कारणों से निर्मित होती है। भारत में झीलों के प्रकार निम्नलिखित हैं, जिनका वर्णन उदाहरण सहित दिया जा रहा है. 

(i) धंसान घाटी झील – धंसान घाटी में जलजमाव होने से इस प्रकार की झील बनता है। अफ्रीका में इस प्रकार की झील की संख्या अधिक है । विक्टोरिया, रूडोल्फ एवं न्यासा इसके उदाहरण हैं। भारत में तिलैया बाँध द्वारा भैंसान घाटी में कृत्रिम झील बनाया गया है।

(ii) गोखुर झील-नदियों में जब अवसाद की मात्रा बढ़ जाती है या भूमि की ढाल कम हो जाती है, तब उसके मार्ग में विसर्पण पैदा होने लगता है। अंततः विसर्पण भाग कटकर मुख्य धारा से अलग हो जाता है, जिसका आकार गाय के ‘खुर’ के समान होता है। इसे गोखुर या परित्यक्त झील भी कहा जाता है । इस प्रकार की झील उत्तरी बिहार में पाई जाती हैं। बेतिया का सरैयामान या बेगूसराय का कॉवर झील इसके उदाहरण है। 

(iii) क्रेटर झील – जब ज्वालामुखी के क्रेटर से राख और लावा का आना बंद हो जाता है, तब क्रेटर में वर्षा का जल जमा होकर झील में परिणत हो जाता है । बोलिविया का टिटीकाका और टर्की का कॉक झील इसके उदाहरण हैं। भारत में लोनार झील इसी प्रकार से निर्मित हुई है ।

(iv) लैगून झील – स्पिट तथा रोधिका के द्वारा समुद्रतटीय प्रदेशों में जब समुद्री जल समुद्र से अलग कर लिये जाते हैं, तब ऐसी इशील लैगून कहलाती है। लैगून झील का उदाहरण भारत स्थित चिल्का एवं पुलीकट झील है। 

(v) अवरोधक झील – कभी-कभी पर्वतीय प्रदेशों में भू-स्खलन के कारण चट्टानें गिरकर नदियों के प्रवाह को रोक देती हैं, तो उससे भी झीलें बन जाती हैं। इसे अवरोधक झोल कहतें हैं। 

(vi) हिमानी झील – हिमालय क्षेत्र में हिमानी द्वारा झीलों का निर्माण होता है। नैनीताल, भीमताल, सातताल आदि इसके सुन्दर उदाहरण हैं।

(vii) भूगर्भीय क्रिया से निर्मित झील – जम्मू-कश्मीर में वूलर झील मीठे पानी की भारत में सबसे बड़ी झोल है। जल-विद्युत् पैदा करने के लिए नदियों या बाँध लगाये जाने से भी झील का निर्माण हुआ है। जैसे— भाखड़ा नांगल परियोजना के विकास से गोविन्द सागर झोल का निर्माण हुआ है। लोकतक एवं बड़यानी जैसे कई मीठे पानी की झीलों के साथ-साथ राजस्थान की लवणयुक्त सांभर झील इसी प्रकार की झील है।


5. नदियाँ मानव सभ्यता की जीवन रेखा हैं। स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर ⇒ नदी घाटी में सभ्यताओं का विकास कुछ आकस्मिक नहीं बल्कि इसके कुछ कारण थे। नदियों के किनारे की भूमि उपजाऊ होती है, क्योंकि नदियाँ अपने दोनों किनारों पर उर्वरा मिट्टी गिराती जाती हैं। मानव ने जब कृषि का आविष्कार किया तो वह उपजाऊ भूमि ढूँढ़ने लगा। नदियों की तलहटियों में ऐसी भूमि उपलब्ध थी। इसलिए मानव ऐसी जगहों पर बसने लगा। आबादी नदी की घाटियों में एकत्र होने लगी। इससे सभ्यता के विकास में काफी सहायता मिली। 

नदी के किनारे के जमीन में सिंचाई की व्यवस्था की जा सकती थी । सिंचाई करके उसे उपजाऊ बनाया जा सकता था । उन दिनों सिंचाई के दो प्रमुख साधन थे— वर्षा और नदी । इसलिए सिंचाई की सुविधा ने भी नदी घाटियों में मानव के बसने और उन्नति करने की प्रेरणा दी। 

कषि के साथ-साथ मानव ने पशुपालन का काम शुरू कर दिया था। नदियों की घाटियों में मवेशियों के लिए पर्याप्त सुविधाएँ थीं । उनके लिए वहाँ घास की कोई कमी नहीं थी और हर मौसम में उनके लिए पानी मिल सकता था। 

नदियों की घाटियों की जलवायु प्रायः समशीतोष्ण होती है। ऐसी जलवायु में मनुष्य कठिन परिश्रम कुछ आसानी से कर सकता है। अन्य भागों की अपेक्षा यहाँ कार्यशक्ति की क्षमता कुछ अधिक रहती है। नदी की घाटी में बसने का एक यह भी कारण रहा होगा। 

नदियों के किनारे बसने का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि उस प्राचीन युग में यातायात के साधन उपलब्ध नहीं थे। नदी को ‘प्रकृति का सड़क’ कहा गया, नावों का आविष्कार हो चुका था। उस समय दूर की यात्रा के लिए यह एकमात्र सुविधाजनक साधन थी। नावों द्वारा यात्रा की जा सकती थी और भारी-भारी सामान एक स्थान से दूसरे स्थान पर सफलतापूर्वक ले जा सकते थे । इस कारण भी मनुष्य नदियों की घाटियों में बसने की ओर प्रेरित हुए और वहाँ उच्च कोटि की सभ्यता विकसित हुई।

गृह निर्माण के लिए कोमल मिट्टी की आवश्यकता होती है। ऐसी मिट्टी भी जिनसे ईंट बनायी जा सके, नदी घाटी में ही मिलती थी । अतः बड़े भवन बनाने और नगर बसाने की सुविधा भी यही उपलब्ध थी।


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