Class 9th Geography (भूगोल) Subjective Question

Class 9th Geography Chapter Wise Short & Long Question | भारत : भूमि एवं लोग (भूगोल) चैप्टर नाम- जनसंख्या ( Population) 


Class 9th – कक्षा 9वीं

विषय – भारत : भूमि एवं लोग (Geography)

Objective Question (वस्तुनिष्ठ प्रशन)

चैप्टर का नाम- जनसंख्या ( Population) 


लघु उत्तरीय प्रश्न⇒


1. भारत की साक्षरता दर का वर्णन करें। 

उत्तर ⇒ साक्षरता जनसंख्या का बहुत ही महत्वपूर्ण संसाधनात्मक गुण होता है। साक्षरता के स्तर में कमी आर्थिक प्रगति में एक गंभीर बाधक होता है। वैसे व्यक्ति, जिनकी आयु 7 वर्ष या उससे अधिक है, किसी भाषा को समझकर लिख या पढ़ सकता है, उसे साक्षर की श्रेणी में रखा जाता है। 

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की साक्षरता दर बहुत ही कम थी, लेकिन शिक्षा के विकास के साथ-साथ इसकी दर में वृद्धि होती गई। 2011 की जनगणना के अनुसार देश की साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत, पुरुषों का 82.14 प्रतिशत तथा महिलाओं का 65.46 प्रतिशत है। परम्परागत मान्यताओं के कारण महिलाओं की साक्षरता दर कम है, लेकिन इसमें तेजी से सुधार हो रहा है।


2. भारत के लिंग अनुपात की विशेषताओं को बताएँ । 

उत्तर ⇒ प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या को लिंग अनुपात कहते हैं। भारत में लिंग अनुपात की विशेषता संतोषप्रद नहीं है। इसका मुख्य कारण है – गर्भ जाँच कराना और यदि पता चल जाए कि गर्भ में लड़की है, तो शीघ्र उसका गर्भपात करा देना। 1951 से ही लगातार भारत में लिंग अनुपात महिलाओं के पक्ष में नहीं रहा है। केवल एक केरल राज्य ही है, जहाँ लिंगानुपात महिलाओं के पक्ष में (1084 महिलाएँ / 1000 पुरुष पर) है। हरियाणा में यह स्थिति गंभीर है। वहाँ 1000 पुरुषों पर मात्र 877 महिलाएँ हैं ।


3. जनगणना से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर ⇒ एक निश्चित समयांतराल की आधिकारिक गणना को जनगणना कहते हैं। भारत में सबसे पहले 1872 ई० में जनगणना की गयी थी। सन् 1881 में पहली बार सम्पूर्ण जनगणना की गई थी। उसी समय से प्रत्येक दस वर्ष पर जनगणना होने लगी। 

जनगणना का तात्पर्य है— देशवासियों की गिनती । इससे अनेक आँकड़ों की झलक हमें मिलती है। देश में कुल पुरुषों, महिलाओं, बच्चों, अल्पवयस्कों, वयस्कों, बूढ़ों की संख्या कितनी है। देश में कितने निरक्षर, कितने साक्षर तथा कितने शिक्षित हैं। इन सभी बातों की जानकारी मिलती है। इसके अलावे आय, व्यय आदि आँकड़ों का भी पता चलता है।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न⇒


1. भारत की जनसंख्या वृद्धि की विशेषताओं को बताएँ । 

उत्तर ⇒ उत्तर भारत की जनसंख्या की वृद्धि की विशेषताओं का अर्थ है— किसी विशेष समान अंतराल में जैसे 10 वर्षों के भीतर, निवासियों की संख्या में परिवर्तन कहने का तात्पर्य यह है कि भारत की जनसंख्या में प्रतिवर्ष वृद्धि होती रही है। देश के बँटवारे के पहले सम्मिलित भारत की जनसंख्या करीब 40 करोड़ थी। इनमें से करीब 11 करोड़ पाकिस्तान में तथा 29 करोड़ लोग भारत में रहे। 1947 की 29 करोड़ जनसंख्या बढ़कर 1951 में 36 करोड़ तक पहुँच गई। इस प्रकार 1981 में भारत की जनसंख्या लगभग 68 करोड़ से ऊपर हो गई । वृद्धि की दर 1951 में 1.25%, 1961 में 1.96%, 1971 तक 2.20% तथा 1981 तक 2.22% थी। इस प्रकार हम देखते हैं कि 1981 तक जनसंख्या में सतत् वृद्धि हुई । लेकिन जनसंख्या नियंत्रण अधिनियम के अंतर्गत सरकार द्वारा किये गये प्रयास के सकारात्मक परिणाम के कारण यह वृद्धि दर घटकर 1991 में 2.14% तथा 2001 में 1.93% पर आ गई। अतः वृद्धि दर घटने के बावजूद भी जनसंख्या- वृद्धि जारी रही। 1981 में भारत की जनसंख्या 68 करोड़ के लगभग थी। इसी प्रकार यह 2001 में 103 करोड़ के लगभग पहुँच गई। इसका कारण यह था कि जनसंख्या जितनी ही अधिक थी, वृद्धि-दर के घटने के बावजूद कुल जनसंख्या, बढ़ती रही। 2011 की जनगणनानुसार, भारत की जनसंख्या 1,21,01,93,422 (पुरुष – 62,37,24,248; स्त्रियाँ – 58,64,69, 174 ) हो गई।


2. भारत के विषम जनसंख्या घनत्व का वर्णन करें। 

उत्तर ⇒ प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में निवास करने वाली जनसंख्या । भारत की जनगणना 2011 के अनुसार, भारत का औसत जनसंख्या घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्गकिमी है, लेकिन उसमें भारी विषमता देखने को मिलती है। मैदानी राज्यों में सर्वाधिक घनत्व है, तटीय राज्यों में भी काफी घनत्व है, लेकिन पर्वतीय राज्यों में अधिवासी आर्थिक संरचनात्मक सुविधा में कमी के कारण कम घनत्व पाये जाते हैं। पठारी राज्यों में सामान्य घनत्व की स्थिति है। भारतीय राज्यों में सर्वाधिक घनत्व बिहार का है। यहाँ औसतन प्रति वर्गकिमी 1102 व्यक्ति रहते हैं। इसके बाद क्रमशः पश्चिम बंगाल (1028) एवं केरल (860) का स्थान आता है। सबसे कम घनत्व अरुणाचल प्रदेश अर्थात् पर्वतीय राज्य का है, जहाँ औसत घनत्व मात्र 17 व्यक्ति प्रति वर्गकिमी है। केन्द्रशासित प्रदेशों को सम्मिलित कर देखा जाए, तो सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व दिल्ली में है। यह 11,320 व्यक्ति प्रति वर्गकिमी है। लेकिन सबसे कम जनसंख्या घनत्व अरुणाचल प्रदेश में ही है। केन्द्रशासित प्रदेशों में अंडमान निकोबार द्वीपसमूह जनसंख्या का घनत्व मात्र 46 व्यक्ति प्रति वर्गकिमी है। 

जनसंख्या की वृद्धि दर तीव्र होने के कारण भारत के औसत जनसंख्या घनत्व में भी तेजी से वृद्धि हुई है। यह 1901 में मात्र 37 व्यक्ति प्रति वर्गकिमी था, जो 2011 में बढ़कर 382 व्यक्ति हो गई।


3. भारत में जनसंख्या वृद्धि के दुष्प्रभावों का वर्णन कीजिए। 

उत्तर ⇒ भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या के निम्नलिखित दुष्प्रभाव हो रहे 

(1) तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण कृषि के क्षेत्र में अनावश्यक भीड़ हो गयी है और कृषि में छुपी हुई बेरोजगारी विद्यमान है। फलस्वरूप कृषि की उत्पादकता उतनी नहीं है जितनी होनी चाहिए थी। 

(2) भारत में जनसंख्या वृद्धि के परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय में यथोचित वृद्धि नहीं हो रही है। 

(3) देश में बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्रति व्यक्ति कृषि क्षेत्र में निरंतर कमी हो रही है। उदाहरण के लिए, 1921 में प्रति व्यक्ति कृषि क्षेत्र 1.11 एकड़ था जो 1981 में घटकर 0.62 एकड़ हो गया। इस प्रकार प्रति व्यक्ति कृषि क्षेत्र में 44 प्रतिशत की कमी हुई।

(4) जनसंख्या की वृद्धि ने देश में खाद्य समस्या उत्पन्न कर दिया है। हमें प्रतिवर्ष जनता के भरण-पोषण के लिए लाखों रुपये का अन्न आयात करना पड़ता है। यदि हम इस खर्च की बचत कर पाते तो इस धन का उपयोग आर्थिक विकास की योजनाओं को कार्यान्वित करने में कर सकते थे। 

(5) जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण श्रम-शक्ति बढ़ रही है और देश को बेरोजगारी की भयंकर समस्या का सामना करना पड़ रहा है।

(6) तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय में वृद्धि के बावजूद प्रति व्यक्ति आय कम है। जिसके कारण लोगों का जीवन-स्तर निम्न कोटि का है। 

(7) जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होने से माँग भी तेजी से बढ़ती है जिससे मुद्रा स्फीति को बल मिलता है। 

(8) बढ़ती हुई जनसंख्या औद्योगिक विकास के मार्ग में बाधक है। हम ‘जानते हैं कि औद्योगिक विकास पूँजी निर्माण पर तथा पूँजी निर्माण बचत पर निर्भर करता है। लेकिन भारत में जो कुछ भी उत्पन्न होता उसका अधिकांश भाग बढ़ती हुई जनसंख्या उपभोग कर जाती है जिससे बचत कम होती है और उद्योगों का विकास नहीं हो पाता है।


4. भारत में जनसंख्या की वर्तमान राष्ट्रीय नीति का वर्णन करें ! 

उत्तर ⇒ भारत में आर्थिक प्रगति को ध्यान में रखकर समय-समय पर उपयुक्त जनसंख्या नीति के प्रारूप प्रस्तुत किए गए। खाद्य आपूर्ति, बेरोजगारी, राष्ट्रीय तथा प्रति व्यक्ति आय, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं, आवास, जीवन-स्तर आदि के साथ ही सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि से भी जनसंख्या नीति के औचित्य को स्वीकार किया गया। देश में परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता का सूत्रपात यद्यपि 1920 में प्रथम परिवार नियोजन क्लीनिक खुलने के साथ हुआ। परन्तु वास्तविक प्रयास 1952 से आरंभ हुआ। प्रथम योजनाकाल से तृतीय योजनाकाल के दौरान जनसंख्या कम करने की नीति निर्धारित करने की आवश्यकता स्वीकार की गयी तथा जन्मदर घटाने के लिए दीर्घकालीन एवं सक्रिय कार्यक्रम बनाने पर बल दिया गया। चौथे योजनाकाल में सीमित परिवार को विकास का मूल तत्त्व माना गया। पाँचवें योजनाकाल में परिवार नियोजन को राष्ट्रीय कार्यक्रम मानकर अप्रैल 1976 में राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की गयी। तत्कालीन 35 व्यक्ति प्रति हजार की अनुमानित वृद्धि दर को 25 व्यक्ति करने तथा 1984 तक वार्षिक वृद्धि दर को 2.2 प्रतिशत से घटाकर 1.7 प्रतिशत की संस्तुति की गयी। इसके अतिरिक्त लड़कों एवं लड़कियों के विवाह की आयु क्रमशः 21 वर्ष तथा 18 वर्ष निर्धारित की गई। केन्द्रीय सहायता संसाधन का 8 प्रतिशत उत्तम परिवार नियोजन कार्यों वाले राज्यों के लिए सुरक्षित किया गया। स्त्री-शिक्षा के विकास तथा शिक्षा प्रणाली में जनसंख्या शिक्षा पर बल दिया गया। परिवार नियोजन के लिए प्रोत्साहन राशि में वृद्धि की गयी तथा इसे जन आन्दोलन का रूप दिया गया। जनन विज्ञान तथा गर्भ निरोधन सम्बन्धी शोधों को उन्नत करने का प्रावधान किया गया । अनिवार्य बन्ध्याकरण बनाने का भी प्रावधान किया गया। परिवार कल्याण कार्यक्रम जिम्मेदार तथा सुनियोजित पितृत्व को बढ़ावा देने के लिए कार्यरत है। 

भारत सरकार ने दो बच्चों के सिद्धांत को बढ़ावा देने तथा 2046 तक जनसंख्या को स्थिर करने के उद्देश्य से 15 फरवरी, 2000 को राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की। यह राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने, शिशु मृत्यु दर को प्रति हजार 30 से कम करने, व्यापक स्तर पर टीकारोधी बीमारियों से बच्चों को छुटकारा दिलाने, लड़कियों की शादी की उम्र को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने, मातृ मृत्यु दर को प्रति लाख 100 से नीचे लाने, सुरक्षित गर्भपात के लिए सुविधाओं में वृद्धि करने तथा अन्य परिवार नियोजन कार्यक्रम को एक जन केन्द्रित कार्यक्रम बनाने के लिए नीतिगत ढाँचा प्रदान करती है। 

इस राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के अन्तर्गत किशोर एवं किशोरियों की पहचान जनसंख्या के उस प्रमुख भाग के रूप में की गई है जिनपर विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है। पौषणिक आवश्यकताओं के साथ-साथ इस नीति में अवांछित गर्भधारण और यौन सम्बन्धों से प्रसारित बीमारियों, जैसे- एड्स से किशोर-किशोरियों की सुरक्षा जैसी अन्य महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं पर बल दिया गया है।


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