बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिंदी महत्वपूर्ण प्रशन 5 मार्क्स लघु और दीर्घ उत्तरीय प्रशन
Bihar Board Class 10th Hindi Short Long Type VVI Guess Question, Matric Exam vvi Subjective Question Hindi 5 Marks & 2 Marks Short Long Type Question With Answer
1. सीता को अपने ही घर में घुटन क्यों महसूस होती है?
उत्तर-सीता के तीन बेटे-बहुएँ और पोता-पोतियों से भरा घर अजनबी हो गया क्योंकि जब उसके पति जीवित थे तब घर का वातावरण सुखद था। लेकिन उनके नहीं रहने पर बेटों की पटती नहीं, बहुएँ चिखती-चिल्लाती हैं। बच्चों को दादी के पास आने नहीं देतीं। सीता एकदम अकेली हो गयी है। बेटे माँ को लेकर आपस में झगड़ते रहते हैं-माँ कब किसके हिस्से रहेगी? इसलिए सीता को अपने ही घर में घुटन महसूस होती है।
2. ‘धरती कब तक घूमेगी’ कहानी का उद्देश्य क्या है?
उत्तर- धरती कब तक घूमेगी कहानी का उद्देश्य है पुराने पारिवारिक मूल्यों का आज के युग में हो रहे क्षरण का चित्रण।
दही वाली मंगम्मा
1. रंगप्पा कौन था और क्या चाहता था?
उत्तर– रंगप्पा मंगम्मा के गाँव का जूआड़ी था और मंगममा से रुपये चाहता था
1. मंगु जिस अस्पताल में भर्ती कराया जाता है उसके कर्मचारी व्यवहार कुशल हैं या संवेदनशील विचार करें।
उत्तर– मंगु को जिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था, वहाँ के कर्मचारी व्यवहार कुशल और संवेदनशील दोनों थे। क्योंकि व्यवहारिक कुशलता से मरीजों का इलाज करते ही थे। परिजनों के साथ संवेदना भी बाँटते थे।
1. बड़े डॉक्टर पाप्पाति के बारे में पूछताछ क्यों कर रहे थे?
उत्तर– पाप्पाति बल्लि अम्माल की बेटी है। जो तमिलनाडु के गाँव से मदुरै शहर अस्पताल में लाई गई है। पाप्पाति बहुत ही भयंकर रोग ‘मेनेनजाइटिस‘ से पीड़ित है। माँ बहुत ही सीधी–साधी गाँव की महिला है। बड़े डॉक्टर अपने छात्रों के साथ पाप्पाति से बेटी की बीमारी के बारे में पूछ–ताछ कर रहे थे ताकि अपने छात्रों को बीमारी के बारे में पढ़ा सकें।
‘मेरे बिना तुम प्रभु‘
1. कवि रेनर मारिया रिल्के को किस बात की आशंका है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– कवि जानता है कि ईश्वर की सत्ता मनुष्य के अस्तित्व पर ही आधारित है। उसकी भगवत्ता भक्त अर्थात् मनुष्य पर ही निर्भर करती है। ऐसी स्थिति में एक चिन्ता सताती है और वह यह कि अगर मनुष्य न रहा तो ईश्वर का क्या होगा? क्या और जीव ईश्वर की खोज करेंगे? संभवतः नहीं। और इस प्रकार, मनुष्य के साथ–साथ ईश्वर भी लुप्त हो जाएगा। यही आशंका कवि को सताती है और पूछता है–मेरे बिना तेरा क्या होगा प्रभु?
2. कवि अपने को जलपात्र और मदिरा क्यों कहता है?
उत्तर– जलपात्र में जल होता है और जल ही जीवन का आधार है। मदिरा से नशा होती है। कवि अपने को जलपात्र इसलिए कहता है कि ईश्वर की सत्ता का आधार मनुष्य ही है। अगर मनुष्य न होगा तो ईश्वर भी न होगा क्योंकि मनुष्य को ही ईश्वर की जरूरत होती है और मनुष्य ही ईश्वरत्व गढ़ता है। कवि अपने को ईश्वर की मदिरा इसलिए कहता है कि ईश्वर की सत्ता का आधार भी मनुष्य ही है। और सत्ता एक नशा है जिसमें अपने आपको सर्वोपरि मानने का भाव आता है। यही कारण है कि मनुष्य अपने को ईश्वर का जलपात्र और मदिरा कहता है।
3. शानदार लबादा किसका गिर जाएगा और क्यों?
उत्तर– कवि कहता है कि ईश्वर ही मनुष्य का निर्माता माना जाता है। कहा जाता है कि मनुष्य के जीवन की डोर उसी ईश्वर के हाथ में है। उसकी कृपा–दृष्टि से ही मनुष्य को वह सब हासिल होता है, जो वह चाहता है। इस प्रकार, ईश्वर की शान–शौकत मनुष्य पर ही आधारित है। ईश्वर का शानदार चोंगा मनुष्य के कारण ही है। ऐसी स्थिति में कवि कहता है कि अगर मनुष्य न रहेगा तो शान किस पर दिखाया जाएगा? अर्थात् मनुष्य के अभाव में ईश्वर का शानदार लबादा, उसका आभा–मण्डल, समाप्त हो जाएगा।
1. कविता में ‘क‘ का विवरण स्पष्ट करें।
उत्तर–अक्षर ज्ञान कविता में कवयित्री चने छोटे बच्चे द्वारा प्रारम्भिक अक्षर बोध को सकार रूप में चित्रित करते कहता है कि ‘क‘ लिखने में अभ्यास–पुस्तिका का चौखट छोटा पड़ जाता है। कर्म पथ भी इसी प्रकार प्रारम्भ में फिसलन भरा होता है। ‘क‘–कबूतर में चंचलता है। बालक भी चंचल होता है। इस प्रकार ‘क‘ अक्षर व्यापकता पूर्ण है।
2. बेटे के आँसू कब आते हैं और क्यों? या सृष्टि–विकास की कथा क्या है?
उत्तर– बेटा अक्षर–ज्ञान की सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ, धीरे–धीरे जब ‘ङ‘, लिखना चाहता है तो परेशानी में पड़ जाता है। ‘ड‘ की टेढ़ी–मेढ़ी बनावट उससे सधती नहीं। ‘ड‘ को माँ और बिन्दु (.) को उसकी गोद में बैठा मान लेने पर भी वह लिखने में सफल नहीं होता। वह अनवरत कोशिश करता है किन्तु कामयाब नहीं होता और उसकी आँखों से आँसू निकल आते हैं। किन्तु उसकी असफलता के आँसू उसमें हताशा नहीं, उत्साह पैदा करते हैं और यह उत्साह ही सृष्टि–विकास की कथा है।
“हमारी नींद
1. ‘हमारी नींद‘ कविता किस प्रकार के जीवन का चित्रण करती है?
उत्तर– इस कविता में समाज के सुविधा सम्पन्न खुशहाल लोगों के परोक्ष अत्याचारों का उदाहरण पेश किया गया है। गरीब जनता अंधविश्वासों में डूबी संघर्षमय जीवन जीती रहे निरंतर आगे बढ़ने वाला हठीला जीवन–व्यापार चलता रहे और सुखी लोग सुख में डूबे रहें।
2. ‘हमारी नींद‘ कविता में कवि किन अत्याचारियों का और क्यों जिक्र करता है?
उत्तर– कवि ने अपनी काव्य–रचना ‘हमारी नींद‘ में अनेक अत्याचारियों का उल्लेख किया है। उसकी दृष्टि में वे भी अत्याचारी हैं जो जीवन की, यों ही, अनेक समस्याओं को जन्म देते हैं। इनके बाद कवि उन लोगों को अत्याचारी कहता है, जो तरह–तरह के उन्माद में दंगे करते–कराते हैं। इतना ही नहीं, अपने विरोधी के घर–द्वार को आग के हवाले करते हैं। फिर कवि कहता है कि सत्ता या साम्राज्य–विस्तार के लिए नाना प्रकार के बमों का इस्तेमाल कर लोगों का सर्वनाश करनेवाले भी अत्याचारी ही हैं। इनके अलावा कवि उन लोगों को भी अत्याचारियों में शुमार करता है जो अंध–विश्वासों को जन्म देते और गरीबों की धार्मिक भावनाओं का शोषण करते हैं।
“एक वृक्ष की हत्या
1. कविता का समापन करते हुए कवि अपने किन–किन अंदेशों का जिक्र करता है और क्यों?
उत्तर–‘एक वृक्ष की हत्या’ शीर्षक के समापन के समय कवि को अंदेशा है। कवि को अपने घर, शहर और देश की आशंका है। नदियों की चिन्ता है जो नालों में दबल रही है। वायुमंडल की चिन्ता है जो कार्बन उत्सर्जन कर रहे हैं। खाद्य पदार्थ जो जहर बन गए हैं की चिन्ता है। अर्थात् पूरे भारत पर लुटेरों का हमला हो गया है। सम्य मानव इतना असम्य हो गया है कि उसका उल्टा असर मनुष्य पर ही पड़ेगा।
2. वृक्ष और कवि में क्या संवाद होता है?
उत्तर–कवि बुद्धिजीवी है। वह जानता है कि बूढ़ा चौकीदार विश्वासी होता है। उसका अनुभव हमेशा हितकर होता है। चौकीदार के रूप में वह वृक्ष भी बुढ़ा है लेकिन उसके बलबूते में कोई कमी नहीं आयी है। वह सजग है। दूर से आते कवि को देखकर ललकारता है कि तुम कौन हो और ‘दोस्त‘ के रूप में मीठे स्वर को सुन झुक जाता है। संवादशैली की यह कविता मनुष्य और वृक्ष के संबंध का युग–युगान्तर का बताता है।
“हिरोशिमा‘
1. ‘हिरोशिमा‘ कविता से हमें क्या सीख मिलती है?
उत्तर– प्रस्तुत कविता में मानव का रचा हुआ सूरज और कुछ नहीं अणुबम है। यह जानते हुए कि इसके विस्फोट से भयंकर संहार होगा, मनुष्य ने यह कार्य किया, यही त्रासदी है। मानव का बनाया हुआ सूरज ही मानव को वाष्प बनाकर चट कर गया, सोख गया। इस प्रकार विश्व राजनीति में आयुधों की होड़ से जो संकट गहरा रहा है, वह दुखद है।
2. छायाएँ दिशाहीन सब ओर क्यों पड़ती हैं? स्पष्ट करें।
उत्तर– इस प्रसंग में कहा गया है कि अणुबम का प्रहार जापान के हिरोशिमा शहर पर किया गया था। वह विनाशक था जिसमें से सभी तरफ जलने से रौशनी निकल रही थी। मानव के दिशाहीन मानवता का नाश कर स्वयं भी शर्मशार होता है। अतः उसकी छायाएँ भी दिशाहीन ही होती है।
3. हिरोशिमा में मनुष्य की साक्षी के रूप में क्या है?
उत्तर– ‘हिरोशिमा‘ में मानव–निर्मित अणुबम के चलते भीषण नर–संहार हुआ। बहुत–से लोग तो वाष्प बन गए। उनका अता–पता ही नहीं चला। हाँ, जो लोग नहीं रहे, उत्ताप में स्वाहा हो गए, उनमें से कुछ की छायाएँ झुलसे पत्थरों, दीवारों और सड़कों पर उनकी साक्षी के रूप में या कहिए कि मनुष्य की संहारक प्रवृत्ति की साक्षी के रूप में मौजूद हैं।
‘जनतंत्र का जन्म‘
1. कविवर दिनकर ने जनता के स्वप्न का किस तरह चित्र खींचा है?
उत्तर– कविवर दिनकर ने भारतीय जनता की शक्ति और क्रांतिकारी स्वरूप को प्रस्तुत किया। वर्षों क्या, सौ वर्षों क्या, हजार वर्षों से गुलामी रूपी काला बादल अंधकार फैलाए हुए था, अब समाप्त हुआ। आसमान की खिड़कियाँ उसके हंकार से टनेवाली है। क्योंकि स्वतंत्र भारत का जो स्वप्न जनता ने देखा है, वह वर्षों की कालिमा को तार–तार कर आजादी का प्रकाश फैला चुका है।
2. “देवता मिलेंगे खेतों में खलिहानों में” पंक्ति के माध्यम से कवि किस देवता की बात करता है और क्यों?
उत्तर– कवि दिनकर के अनुसार जनतंत्र में प्रजा ही, जनता ही, सब–कछ होती है। वह राजा होती है। उसी के नाम पर, उसी के हित के लिए. उसके द्वारा अधिकार–प्रदत्त लोग शासन करते हैं। इस प्रकार, प्रजा ही राजा है. जनतंत्र का देवता है। और चूंकि प्रजा किसान और मजदूर है, अतः कवि कहता के जनतंत्र के देवता राजप्रासादों, मंदिरों में नहीं मिलेंगे। ये मिलेंगे खेतों में खलिहानों में, सड़कों पर।
1. कवि ने जनता को ‘दूधमुंही‘ क्यों कहा है ?
उत्तर– कवि के अनुसार मध्यवर्ग से आने वाले सुविधाभोगी नेताओं की दृष्टि में जनता मानो कोई ‘दूधमुंही‘ बच्ची हो। जिसे बहलाने–फुसलाने के लिए दो–चार खिलौने ही विकास के प्रलोभन के लिए काफी हैं।
2. भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी क्यों बनी हुई है?
उत्तर– प्रवासी वह होता है, जो परदेश में जाकर बसता है। वहाँ उसे बहुत–से अधिकार नहीं होते जो वहाँ के मूल निवासिसों के होते हैं। वहाँ उसे मूल निवासियों की भाँति आमतौर से, मान–सम्मान भी प्रापत नहीं होता। परतंत्र–काल में यहाँ के लोगों के अधिकार भी छीन गए, विदेशी शासकों के आगे मान–सम्मान भी जाता रहा। परदेशी अधिक प्रभावशाली बन गए। इस प्रकार, भारतमाता अपने देश में ही प्रवासिनी हो गई।
3. भारतमाता का हास भी राहुग्रसित क्यों दिखाई पड़ता है?
उत्तर– कहते हैं राहु जैसे दुष्ट ग्रह की छाया जब चन्द्रमा पर पड़ती है तो ग्रहण होता है अर्थात् चन्द्रमा की प्रसन्नता, हँसी–खुशी, कांति कम हो जाती है। चूँकि भारतमाता पराधीन है, विदेशियों की काली छाया इस पर पड़ रही है, अतएव इसकी हँसी पर भी ग्रहण लगा है। इसी कारण, इसका हास भी राहुग्रसित दिखाई देता है।
1. कवि प्रेमघन को भारत में भारतीयता क्यों नहीं दिखाई पड़ती? .
उत्तर– कवि प्रेमघन जब भारतभूमि पर दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि चारों ओर लोग अंग्रेजी वेश–भूषा में हैं, रहन–सहन, रीति–रिवाज भी लोगों का विदेशियों जैसा हो गया है, घर–द्वार भी लोग विदेशी–शैली के बनाने लगे हैं। लोगों को हिन्दी बोलने में शर्म और अंग्रेजी में संभाषण करने पर गर्व का बोध होता है। लोग हिन्दुस्तानी नाम से घृणा करते हैं। इस प्रकार, कवि को भारत में कहीं भारतीयता दिखाई नहीं पड़ती।
2. कवि ने ‘डफाली‘ किसे कहा है और क्यों?
उत्तर– ‘डफाली‘ वह है जो ‘डफ‘ अर्थात् ताशा बजाता है। इसकी आवाज बड़ी तेज होती है और इसका लक्ष्य होता है शोर मचाना, लोगों का ध्यान आकर्षित करना। कवि देखता है कि कुछ लोग शासकों की झूठी प्रशंसा करने में दिन–रात लगे रहते हैं। उनके द्वारा किए जाने वाले गुणगान में रंचमात्र की भी सत्यता नहीं होती। वे छोटी–सी बात को बढ़ा–चढ़ा कर जोर–शोर से लोगों को सुनाते हैं। इनका लक्ष्य होता है अपने स्वामी को खुश करना या जिससे कछ पाने की उम्मीद हो, उसे प्रसन्न करना। कवि ऐसे ही झूठे प्रशंसकों को को, डफाली कहता है।
3. ‘स्वदेशी‘ शीर्षक कविता में कवि समाज के किस वर्ग की आलोचना जोन है और क्यों?
उत्तर– ‘स्वदेशी‘ कविता में ‘प्रेमघन‘ भारतीय समाज के उस वर्ग की आग करते हैं जो दिन–रात भारत के तत्कालीन गौरांग–प्रभुओं की खुशामद कर उनका गुणगान करने में लगे रहते थे, अपनी भाषा बोलने में, देसी वेश पहनने में अपमान समझते थे और अपने देशवासियों से घृणा करते थे। कवि आलोचना का उद्देश्य ऐसे लोगों में राष्ट्रीय भावना उत्पन्न करना था।
‘अति सूधो सनेह का मारग है‘
1. ‘मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं‘ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर– कवि घनानंद ने प्रेम–मार्ग की विशेषता का उल्लेख करते हुए कहा है कि यह ऐसा मार्ग है जिसमें मन चला जाता है किन्तु कुछ मिलता नहीं। वस्तुतः ‘मन‘ के यहाँ दो अर्थ हैं, एक ‘अन्तर‘ अर्थात् हृदय और दूसरा माप की इकाई – “मन‘ के यहाँ दो अर्थ हैं, एक ‘अन्तर‘ अर्थात् हृदय और दूसरा माप की इकाई ‘मन‘ जो अपने जमाने में सर्वाधिक वजनी माना जाता था। इस प्रकार, एक अर्थ यह है कि प्रेम–मार्ग में सर्वाधिक ‘मन‘ देना है, किन्तु पाना एक छटाँक भी नहीं है। दूसरा अर्थ है ‘हृदय‘ देना है किन्तु प्रतिदान की आशा नहीं रखना है। वस्तुतः कवि के ‘मन लेह पै देहु छटाँक नहीं‘ कहने का तात्पर्य यह है कि प्रेम–मार्ग उत्सर्ग का मार्ग है, इस पर प्रतिदान के आकांक्षी नहीं चलते।
2. घनानन्द के अनुसार परहित के लिए देह धारण कौन करता है?
उत्तर– परहित के लिए (दूसरों की भलाई के लिए) बादल देह धारण करता है। बादल जल का भंडार होता है और वह बनता ही बरसने के लिए। बरसने के बाद उसका अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। बादल सूखी धरती पर बरसकर उसे हरा–भरा बना देता है। ग्रीष्म से तप्त धरती को सुकून देने के लिए बादल अपने अस्तित्व को समाप्त कर लेता है।
राम बिनु बिरथे‘
1. गुरुनानक की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है?
उत्तर– जो सांसारिकता का परित्याग कर इस आल–जाल से निकल सके। और जिसको काम, क्रोध, मद, मोह छु न सके। उसी के हृदय में ब्रह्म का निवास संभव है।
2. कवि किसके बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है?
उत्तर– कवि राम नाम के बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानता है।
‘शिक्षा और संस्कृति
1. शिक्षा का ध्येय गाँधीजी क्या मानते थे और क्यों? अथवा, गाँधी जी के अनुसार शिक्षा का जरूरी अंग क्या होना चाहिए?
उत्तर–गाँधीजी शिक्षा का मूल ध्येय चरित्र–निर्माण मानते थे। उनका ख्याल था कि किताबी ज्ञान तो चरित्र–निर्माण का एक साधन है। असल बात है मनुष्य में साहस, बल, सदाचार और किसी बड़े लक्ष्य के लिए आत्मोसर्ग करने का ज्ञान। इनके अभाव में सम्यक चरित्र का निर्माण नहीं होता। गाँधीजी चरित्र–निर्माण पर इसलिए जोर देते थे कि स्वराज्य होने पर ऐसे चरित्रवान लोग समाज का काम संभालेंगे और देश की समुन्नति होगी।
नौबतखाने में इबादत
1. डुमराँव की महत्ता किस कारण से है?
उत्तर– डुमराँव की महत्ता दो कारणों से है। पहली तो यह कि इसके आस–पास की नदियों के कछारों में ‘रीड‘–‘नरकट‘–नामक एक प्रकार की घास पाई जाती है जिसका प्रयोग शहनाई बजाने में किया जाता है। दूसरा कारण यह है कि शहनाई के शाहंशाह विस्मिल्ला खाँ का यह पैतक निवास है। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसन यही के थे और इनके खानदान के लोग शहनाई बजाते थे।
2. ‘बिस्मिल्ला खाँ मतलब–बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई।‘–एक कलाकार के रूप में बिस्मिल्ला खाँ का परिचय पाठ के आधार पर दें।
उत्तर– बिस्मिल्ला खाँ जब हाथ में शहनाई लेकर उसे फूंकते थे तो शहनाई की आवाज सबके सिर चढ़कर बोलने लगती थी। उनकी शहनाई में सरगम भरा था। उन्हें ताल मालूम था, राग मालूम था। सातों सुर आकार लेने लगते थे। संगीत का सहाना सफर शुरू हो जाता था। उन्हें सरकार ने ‘भारतरत्न‘ से सम्मानित किया, फिर भी वे अत्यन्त विनम्र रहे, शहनाई के शाहंशाह थे लेकिन कभी किसी कलाकार की आलोचना नहीं की। जिनसे भी सीखा उनके प्रति आदरभाव रखा। इस प्रकार, वे एक सच्चे कलाकार थे।
‘मछली‘
1. संतू मछली लेकर क्यों भागा?
उत्तर–संत मछली लेकर भागा क्योंकि वह नहीं चाहता था मछलियाँ काटी जाएँ। भग्गू उन्हें पटक–पटक कर मार देता और फिर काटता। संतू इसलिए एक मछली गमछे में लपेटकर भाग गया। संतू मछली को बचाना चाहता था।
2. मछली और दीदी में क्या समानता दिखलाई पड़ी? स्पष्ट करें।
उत्तर– मछली और दीदी में बहुत सारी समानताएँ हैं। मछली जल में रहती है, दीदी घर में। मछली झोले में तड़पती है, दीदी घर में छटपटाती है। मछली पानी से निकलने पर पिटती है और दीदी घर में पिता से पिटती है। न मछली अपनी व्यथा व्यक्त कर पाती है और न दीदी।
3. मछली को छूते हुए संतु क्यों हिचक रहा था?
उत्तर–संतु अभी अबोध है। उसे नहीं मालम कि मछलियाँ काटती नहीं हैं। इसलिए वह मछलियों को छूने से हिचक रहा है। बड़े भाई के समझाने पर वह एकबार छूता है, लेकिन झट से अपनी ऊँगली हटा लेता है। उसके मन का डर अभी भी बना हुआ है।
‘आविन्यों‘
1. अशोक वाजपेयी की नदी तट पर बैठे क्या अनुभव होता है?
उत्तर–दक्षिण फ्रांस की रोन नदी के किनारे बैठे हुए लेखक को ऐसा लगता है कि वह भी नदी के साथ उसके प्रवाह से मिल बह रह रहा है। शीतल और स्वच्छ जल में कवि भी स्वयं को उसी की तरह समझने लगता है।
“जित–जित मैं निरखत हैं‘
1. बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज अपनी माँ को क्यों मानते थे?
उत्तर–बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज अपनी अम्माँ को इसलिए मानते थे क्योंकि उनकी अम्माँ अपनी कुल परंपरा से आती हुई कथक नर्तकों की महान विरासत अपनी स्मृतियों में सहेजकर रखती थीं और बच्चे के पिता के निधन के बाद उसकी देख–भाल के अलावा रियाज पर नजर रखती थीं। गड़बड़ी होने पर बाबूजी की तस्वीर दिखाकर हौसला बढ़ाती थीं।
2. बिरजू महाराज कौन–कौन से वाद्य बजाते हैं?
उत्तर–बिरजू महाराज महान नर्तक थे। उनके कार्यक्रम देश के भिन्न–भिन्न कोने में हुए, विदेशों में नाम कमाया। लेकिन नर्तन के अलावा, वाद्य–वादन का भी काफी शौक था। वे सितार, तबला, हारमोनियम, गिटार, सरोद, बाँसुरी आदि बजाया करते थे।
3. बिरजू महाराज के गुरु कौन थे? उनका संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर–बिरजू महाराज के गुरु उनके पिताजी थे। वे खुद अपने जमाने के प्रसिद्ध नर्तक थे–नृत्य के प्रति पूर्णतः समर्पित। अनेक राजाओं–नवाबों के दरबार में रहे लेकिन नौकरी उन्हें नहीं भाती थी। आजाद तबीयत के आदमी थे–एकदम फक्कड़।
किसी को तकलीफ में देख पसीज जाते और दूसरों से कर्ज लेकर उसकी मदद करते थे। इसलिए उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। वे अपनी पीड़ा किसी को बताते नहीं थे। 54 वर्ष की आयु में चल बसे।
4. बिरजू महाराज का अपने शागिर्दो के बारे में क्या राय है?
उत्तर–अपने शागिर्दो के बारे में बिरजू महाराज की राय है कि विदेशी शिष्यों में वैरानिक उन्नति कर रही है। तीरथ प्रताप और प्रदीप ने अच्छा काम किया हैं, शाश्वती तरक्की की राह पर है और दुर्गा भी। कृष्ण मोहन और राममोहन उतना ध्यान नहीं दे रहे हैं, जितना देना चाहिए। बेटे भी ध्यान नहीं दे रहे हैं। इन लोगों में अपेक्षित उत्साह, त्याग, समर्पण की भावना नहीं है। ये नाच को इन्ज्वायमेंट समझते हैं, साधना नहीं।
“परंपरा का मूल्यांकन‘
1. परम्परा ज्ञान किनके लिए आवश्यक है और क्यों?
उत्तर–जो लोग साहित्य में युग–परिवर्तन चाहते हैं, जो लकीर के फकीर नहीं हैं और जो रूढ़ियाँ तोड़कर क्रांतिकारी साहित्य की रचना करना चाहते हैं, उनके लिए साहित्य की परम्परा का ज्ञान जरूरी है। ऐसा इसलिए कि साहित्य की परम्परा के ज्ञान से ही प्रगतिवादी दृष्टिकोण विकसित होता है और परिवर्तन–मूलक साहित्य का जन्म होता है।
2. साहित्य का कौन–सा पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होता है? इस संबंध में लेखक की राय स्पष्ट करें।
उत्तर– साहित्य का संबंध मनुष्य से है। किन्तु मनुष्य आर्थिक जीवन के अतिरिक्त भी प्राणी के रूप में अपना जीवन जीता है। बहुत–सी आदिम भावनाएँ साहित्य में प्रतिफलित होती और इस प्रकार इसे मनुष्य से जोड़ती हैं। वस्तुतः साहित्य मात्र विचारधारा नहीं है। इसमे मनुष्य का इन्द्रिय–बोध, उसकी भावनाएँ भी व्यंजित होती हैं। साहित्य का यही पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होता है।
3. साहित्य के निर्माण में प्रतिभा की भूमिका को स्वीकार करते हुए लेखक किन खतरों से आगाह करता है?
उत्तर–यह निर्विवाद है कि विशेष सामाजिक परिस्थितियों में कला या साहित्य का विकास होता है किन्तु समान सामाजिक परिस्थितियाँ होने पर भी कला का विकास हो, यह जरूरी नहीं है। यहाँ असाधारण प्रतिभाशाली लोगों की भूमिका होती है। वे ही मानव–मन की अतल गहराइयों में डूबकर साहित्य के मोती निकालते हैं। शेष लकीर के फकीर होते हैं। किन्तु इन विशिष्ट लोगों की कृतियाँ भी पूर्णत: दोष–रहित नहीं होती। इसलिए कुछ नया करने की गुंजाइश रहती है। लेकिन व्यक्ति–पूजा से सावधान रहना चाहिए, तभी साहित्य स्थायी महत्व का होगा।
4. लेखक के अनुसार सफलता और चरितार्थता क्या है?
उत्तर–लेखक के अनुसार सफलता और चरितार्थता में अंतर है। मनुष्य मारणास्त्रों के संचयन से, उपकरणों के बाहुल्य से उस वस्तु को पा सकता है जिसे उसने बड़े आडम्बर के साथ सफलता नाम दे रखा है। परंतु मनुष्य की चरितार्थता प्रेम में है, मैत्री में है, त्याग में है, अपने को सबके मंगल के लिए नि:शेष भाव से दे देने में है।
‘बहादुर
1. अपने शब्दों में पहली बार दिखे बहादर का वर्णन करें।
उत्तर– बहादुर ठिगने कद का चकइट लड़का था। रंग गोरा था और चिपटा मुँह। वह अपनी आँखें बुरी तरह मटका रहा था। उसने सफेद निकर, आधी बाँह की सफेद कमीज और भूरे रंग का पुराना जूता पहना हुआ था। उसके गले में स्काउटों जैसा एक रूमाल बाँधा था। पहली बार में वह ऐसा ही दिखा था।
2. बहादुर के चले जाने पर सबको पछतावा क्यों होता है?
उत्तर– बहादुर की तरह कर्मठ, ईमानदार नौकर खोजने पर भी न मिलने के कारण और झूठ–मूठ उस पर चोरी का इल्जाम लगाने के चलते घर के सब व्यक्ति को पछतावा होता है।
‘नागरी लिपि
1. देवनागरी में कौन–सी भाषाएँ लिखी जाती हैं?
उत्तर– देवनागरी में संस्कृत, प्राकृत, खड़ी बोली की भाषाएँ लिखी जाती हैं। इनके अलावा हिन्दी की विविध बोलियाँ तथा नेपाली और नेवारी भाषा देवनागरी में लिखी जाती है।
2. देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता कैसे आई?
उत्तर– लगभग दो सौ वर्ष पहले छापाखाने के लिए देवनागरी लिपि बनी तब से अनेक पुस्तकें छपनी शुरू हो गयी। केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय विभिन्न साहित्यिक और विद्वानों ने इस लिपि में सुधार कर प्रेस तथा कंप्यूटर के लायक बनाया। इससे इसमें स्थिरता आ गई।
3. लेखक ने पटना से नागरी का क्या संबंध बताया है?
उत्तर–‘पादताडितकम‘ नामक नाटक से जानकारी मिलती है कि पाटलिपुत्र (पटना) को नगर कहते थे। अतः ‘नागर‘ या ‘नागरी‘ शब्द उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता है। लेखक ने कहा है कि हो सकता है यह बड़ा नगर प्राचीन पटना ही हो।
‘नाखन क्यों बढते हैं
1. बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को क्या याद दिलाती है?
उत्तर– नाखूनों का बढ़ना पाश्विक प्रवृत्ति मनुष्य की सहजवृत्ति है। यह मनुष्य को हमेशा याद दिलाती है कि तुम असभ्य युग से सभ्य यग में आ गए, लेकिन तुम्हारी सोच मेरी तरह है जो लाख मन से हटाओ पनप ही जाती है। मनुष्य के ईर्ष्या, जड़ता, हिंसक प्रवृत्ति क्रोध आदि कभी खत्म होने वाला नहीं है। तभी तो शस्त्रों की होड़ लगी हुई है। नाखून बढ़ते हुए यह याद दिलाती है।
2. लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना कहाँ तक संगत है?
उत्तर– अस्त्र हाथ में रखकर वार किया जाता है और शस्त्र फेंककर। लाखों वर्ष पहले मनुष्य जंगली था, वनमानुष जैसा नाखून द्वारा ही वह जंगली जानवरों आदि से अपनी रक्षा करता था। दाँत भी थे लेकिन उनका स्थान नाखूनों के बाद था। चूँकि नाखून हमारे शरीर का अंग है, इसलिए लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना सर्वथा उचित है।
3. लेखक क्यों पूछता है कि मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है? पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर? स्पष्ट करें।
उत्तर– लेखक देखता है कि मनुष्य एक ओर अपने बर्बर–काल के चिह्न नष्ट करना चाहता है और दूसरी ओर प्रतिदिन घातक शस्त्रों की वृद्धि करता है तो वह चकित रह जाता है और उसके मन में सवाल उठता है कि आज मनुष्य किस ओर जा रहा है–पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर? वस्तुतः लेखक मनुष्य को मनुष्यता की ओर ले जाना चाहता है। वह चाहता है कि मनुष्य में मानवोचित संयम, सदाशयता और स्वाधीनता के भाव जगें, वह शस्त्रों की होड़ में न पड़े।
4. ‘स्वाधीनता‘ शब्द की सार्थकता लेखक क्या बताता है?
उत्तर– आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के विचार से ‘स्वाधीनता‘ शब्द अत्यन्त व्यापक और अर्थपूर्ण है। इसमें अपने–आप ही अपने–आपको नियंत्रित करने का भाव है, कोई बाह्य दबाव नहीं है। इस शब्द में हमारे देश की परंपरा और संस्कृति परिलक्षित होती है जिसका मूल तत्व है संयम और दूसरे के सुख–दुख के प्रति समवेदना, त्याग और श्रेष्ठ के प्रति श्रद्धा। यही कारण कि द्विवेदी जी ने ‘अनधीनता‘ की अपेक्षा ‘स्वाधीनता‘ शब्द को ‘इण्डिपेण्डेंस‘ का सार्थक पर्याय माना है।
5. मनुष्य बार–बार नाखूनों को क्यों काटता है?
उत्तर– मनुष्य नहीं चाहता कि बर्बर युग की कोई निशानी उसमें शेष रहे। इसलिए, बार–बार नाखूनों को काटता है।
‘भारत से हम क्या सीखें‘
1. मैक्समूलर की दृष्टि में सच्चे भारत के दर्शन कहाँ हो सकते हैं और क्यों?
उत्तर– मैक्समूलर की दृष्टि में सच्चे भारत के दर्शन मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई जैसे शहरों में नहीं, भारत के गाँवों में हो सकते हैं क्योंकि इसकी सर्वाधिक आबादी गाँवों में बसती है। वहीं हार्दिक संपन्नता और आर्थिक विपन्नता है। धर्म और इतिहास के अवशेष वहीं सुरक्षित हैं।
2. धर्म की दृष्टि से भारत का क्या महत्व है? ‘भारत से हम क्या सीखें‘ पाठ के आधार पर बतायें।
उत्तर– धर्म की दृष्टि से भारत अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसलिए कि धर्म के उद्भव और उसके नष्ट होनेवाले रूप का यहाँ प्रत्यक्ष ज्ञान यहाँ होता है। यह वैदिक धर्म, बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म की जन्मभूमि है तो इस्लाम और ईसाई धर्म की शरणस्थली भी है। यहाँ विभिन्न धर्मावलम्बी सदियों से हिलमिल कर रहते हैं। मत–मतान्तर यहाँ प्रकट और विकसित होते हैं
‘विष के दाँत‘
1. काशू और मदन के बीच झगड़े का क्या कारण था? इस प्रसंग द्वारा लेखक क्या दिखलाना चाहता है?
उत्तर–काशू और मदन के बीच झगड़े का कारण काशू की लटू खेलने की ललक और मदन द्वारा उसे खेलाने से इनकार करना था। लेखक इसके द्वारा बच्चों की ईर्ष्या और इनकार दिखाना चाहता है।
श्रम विभाजन और जाति प्रथा
1. लेखक के अनुसार आदर्श समाज में किस प्रकार की गतिशीलता होनी चाहिए?
उत्तर– किसी भी आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचारित हो सके। ऐसे समाज के बहुविध हितों में सबका भागी होना चाहिए तथा सबको उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए।
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